बीते कई वर्षों से अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन परत में लगातार छेद बनता जा रहा है. यह प्रक्रिया साल 1980 से लगातार जारी है. खासतौर से अंटार्कटिका के ऊपर की ओजोन परत लगातार पतली हो रही है और पिछले 4 सालों में यहां के ओजोन परत में छेद और ज्यादा बड़ा हुआ है. साल 2022 में जब इसे नापा गया था तो यह 2.64 करोड़ वर्ग किलोमीटर चौड़ा था, यानी कि साल 2015 के बाद से अब तक का सबसे बड़ा छेद था. आज इस आर्टिकल में हम आपको इसी से जुड़े कई तथ्य बताएंगे.


साल 1980 में पता चला


ओजोन परत का छेद सबसे पहले साल 1980 के शुरुआत में देखा गया. नासा के मुताबिक, इसका आकार सबसे बड़ा साल 2006 में हुआ था. हालांकि, कई बार इसमें सुधार भी हुआ है. मौजूदा समय में नासा के वैज्ञानिक मानते हैं कि आंकड़ों के अनुसार देखें तो ओजोन परत के छेद में सुधार हो रहा है... इसीलिए वह इसके इतने बड़े आकार को लेकर भी ज्यादा चिंतित नहीं हैं. नासा के गोड्डार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर के चीफ अर्थ साइंटिस्ट पॉल न्यू मैन का कहना है कि ओजोन परत की छेद में सुधार देखने को मिल रहा है.


क्या करता है ओजोन परत


ओजोन परत का हमारी पृथ्वी पर गंभीर असर होता है. दरअसल, ओजोन परत का एक अणु तीन ऑक्सीजन परमाणु के मिलने से बनता है. यही वजह है कि इस परत में सूर्य से आने वाली खतरनाक पराबैंगनी किरणें अवशोषित हो जाती हैं और इसी के ऊर्जा से ओजोन का एक ऑक्सीजन अणु और एक ऑक्सीजन परमाणु टूटता है और फिर वापस ओजोन में बदल जाता है. इससे होता यह है कि पराबैंगनी किरणें पृथ्वी की सतह तक नहीं पहुंच पाती. लेकिन जब इसमें छेद हो जाता है तो पराबैंगनी किरणें सीधे पृथ्वी पर पहुंचती है और इसके कई गंभीर नुकसान देखे जा सकते हैं.


रेफ्रिजरेशन और एयर कंडीशनिंग से हो रहा है खासा नुकसान


पर्यावरण संरक्षण एजेंसियों का मानना है कि रेफ्रिजरेशन और एयर कंडीशनिंग से निकलने वाली क्लोरोफ्लोरोकार्बन जैसे पदार्थ वायुमंडल में लंबे समय तक रहते हैं और इनकी वजह से ओजोन परत को गंभीर नुकसान पहुंचता है. दरअसल, वायुमंडल में हटने से पहले एक क्लोरीन परमाणु करीब एक लाख ओजोन अणुओं को नष्ट कर देता है. यही वजह है कि हमेशा लोगों से अनुरोध किया जाता है कि वह कम से कम रेफ्रिजरेटर और एसी का उपयोग करें, ताकि ओजोन परत को नुकसान कम पहुंचे.


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