(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
ओजोन लेयर के हटने पर क्या खत्म हो जाएगा इंसानों का वजूद? जानें क्यों खास है धरती का ये सुरक्षा कवच
Ozone Layer: पृथ्वी के ऊपर गैस की एक पतली सी लेयर है, जिसे ओजोन लेयर कहा जाता है. सूरज से निकलने वाली खतरनाक किरणों से ये ओजोन परत पृथ्वी की रक्षा करती है.
ISRO Mission ADITYA L-1: भारत समेत दुनिया के कई देश चांद और मंगल समेत अलग-अलग ग्रहों को लेकर खोज कर रहे हैं. इन ग्रहों पर जीने के लिए जरूरी वातावरण और हवा-पानी की तलाश हो रही है. फिलहाल जीने के लिए पृथ्वी से ज्यादा सुरक्षित ग्रह नहीं मिल पाया है, जहां पानी, हवा और बाकी के तमाम तत्व इस मात्रा में हैं कि आसानी से कोई जीव जिंदा रह सकता है. इसीलिए कई ऐसी घटनाओं पर भी नजर रखी जाती है, जो पृथ्वी पर असर डाल सकती हैं.
सूरज पर स्टडी के लिए मिशन
सूरज से निकलने वाली खतरनाक किरणें और गर्मी को लेकर भी वैज्ञानिक पिछले लंबे समय से चिंता जता रहे हैं. यही वजह है कि भारत जल्द अपना ADITYA L-1 मिशन लॉन्च करने जा रहा है, जिससे ये पता लगाया जाएगा कि सूरज से निकलने वाली किरणों का पृथ्वी पर क्या बुरा असर हो सकता है.
पृथ्वी एक ऐसा ग्रह है, जो ओजोन लेयर से ढकी हुई है, जो सूरज से निकलने वाली खतरनाक किरणों का असर खत्म कर देती है. लेकिन अगर ये ओजोन लेयर ही खत्म हो जाए तो क्या धरती पर जीवन भी खत्म हो जाएगा?
क्या काम करती है ओजोन लेयर?
पृथ्वी से करीब 20 से 40 किमी की दूरी पर ओजोन परत होती है. ये एक गैस की हल्की परत होती है. यही वो सुरक्षा दीवार है जो सूरज से निकलने वाली खतरनाक किरणों से पृथ्वी में रहने वाले इंसानों और बाकी जीवों को बचाने का काम करती है. इससे सूरज से निकलने वाली खतरनाक अल्ट्रावायलेट किरणें सीधे पृथ्वी तक नहीं पहुंच पाती हैं.
बिना ओजोन के क्या होगा?
अब अगर कल्पना करें कि ओजोन परत पृथ्वी के ऊपर से पूरी तरह से हट जाए तो क्या होगा? ऐसा होने पर कई तरह के बदलाव देखने को मिलेंगे, इंसानों में कैंसर जैसी बीमारियां फैलने लगेंगीं और सूरज की खतरनाक किरणों का असर पूरी दुनिया में दिखेगा. सूरज की इन किरणों से प्रतिरोधक क्षमता काफी कम हो जाएगी. इसके अलावा बर्फ तेजी से पिघलने लगेगी, जिससे एक बड़ी तबाही हो सकती है. यानी इस सुरक्षा कवच के बिना धरती में जीवन खत्म हो सकता है.
ओजोन परत में छेद होने की खबरें पिछले कई सालों से सामने आती रही हैं, जो दुनियाभर के वैज्ञानिकों के लिए चिंता का विषय है. इसी को ग्लोबल वार्मिंग का कारण भी बताया जाता है. हालांकि इन छेदों को भरने के लिए वैज्ञानिक लगातार काम करते हैं.
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