पाकिस्तान में ये कैसे तय होता है कि कौन होगा आर्मी चीफ, किन-किन चीजों में देता है दखल?
पाकिस्तान के नए आर्मी चीफ के पद का ऐलान हो गया है और अब लेफ्टिनेंट जनरल सईद आसिम मुनीर सेना प्रमुख होंगे. तो जानते हैं पाकिस्तान में इस पद के लिए अफसर का सेलेक्शन कैसे होता है.
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने नए आर्मी चीफ का ऐलान कर दिया है. अब लेफ्टिनेंट जनरल सईद आसिम मुनीर नए सेना प्रमुख होंगे, जो जनरल बाजवा का स्थान लेंगे. आसिम मुनीर को खुफिया एजेंसी आईएसआई का एक बदनाम नाम माना जाता है. नए आर्मी चीफे के नाम के ऐलान के बाद अब भारत में लोगों के मन में सवाल है कि आखिर पाकिस्तान में आर्मी चीफ का सेलेक्शन कैसे होता है और एक आर्मी चीफ पाकिस्तान के किन किन अहम फैसलों में अपना रोल निभाता है. तो आज हम आपको बताते हैं कि पाकिस्तान के आर्मी चीफ का किन-किन कामों में होल्ड होता है और किस तरह इनका चयन होता है.
कैसे होता है आर्मी चीफ का चयन?
पाकिस्तान में आर्मी चीफ का पद कौन संभालेगा, इसका फैसला पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ही करते हैं. सबसे पहले पाकिस्तान के मौजूदा चीफ प्रधानमंत्री को सीनियर मोस्ट अफसर के नाम की सिफारिश करते हैं. ऐसा बहुत कम ही होता है कि आर्मी चीफ की बैटन को टॉप चार अफसरों में से किसी और को ट्रांसफर किया जाए यानी अक्सर टॉप चार अधिकारियों में से ही किसी को सेना की कमान संभाली जाती है. बता दें कि इस बार भी लेफ्टिनेंट जनरल के नाम पर फैसला किया गया है.
आर्मी चीफ का कार्यकाल तीन साल का होता है, लेकिन कई बार इस कार्यकाल को आगे बढ़ा दिया जाता है. जैसे इस बार बाजवा ने भी किया है. उनके रिटायर होने की खबरों के साथ ही ये भी बताया जा रहा था कि हो सकता है कि बाजवा का कार्यकाल फिर से बढ़ सकता है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. अब पीएम ने लेफ्टिनेंट जनरल मुनीर के नाम पर फैसला लिया है.
कहां होता है आर्मी सेना का होल्ड?
पाकिस्तान में आर्मी चीफ का रोल काफी ज्यादा है और कई बार तो ऐसी नौबत आई है कि सेना ने तख्तापलट ही कर दिया. सेना ने तीन बार चुनी हुई सरकार को गिराकर सेना का शासन स्थापित किया है और देश पर कई सालों तक राज किया है. यहां तक कि जब पाकिस्तान में लोकतांत्रिक सरकार भी रहती है तो आर्मी चीफ सुरक्षा मामलों में और विदेशी मामलों में निर्णायक भूमिका में रहते हैं. रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, सेना चीफ पाकिस्तान में विदेशी रिश्तों को लेकर कई नीतिगत फैसले भी लेते हैं, जैसे बाजवा ने चीन और अमेरिका के साथ रिश्तों में अहम भूमिका निभाई थी, जिससे इस्लामाबाद और बीजिंग में दूरियां कम हुई थीं.
इसके अलावा बाजवा ने इकोनॉमिक मामलों में भी काफी हस्तक्षेप किया था और अपनी रूचि दिखाई थी. इसके साथ ही आर्मी को मिलने वाले बजट को लेकर अहम फैसले लिए थे. इसके साथ ही बाजवा ने पाकिस्तान से जुड़े मामलों को लेकर कई देशों की यात्राएं भी की थीं. साथ ही दो देशों के बीच होने वाले समझौतों में भी आर्मी चीफ काफी अहम रोल निभाता है.
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