15 अगस्त 1947 को भारत अंग्रेजों से आजाद हुआ...लेकिन इससे एक दिन पहले भारत का एक हिस्सा अलग हो कर पाकिस्तान बन गया. यानी 1947 से पहले हर वो बात जो भारत से जुड़ी थी, वो मौजूदा पाकिस्तान से भी जुड़ी थी. अब सवाल उठता है कि क्या 1947 के पहले जो घटनाएं भारत के इतिहास में दर्ज हुईं, उन्हें पाकिस्तान में भी पढ़ाया जाता है. या फिर वहां की इतिहास की किताबों में कुछ और ही लिखा है. चलिए आज इसी के बारे में विस्तार से जानते हैं.


इतिहास के बारे में क्या लिखा है?


पाकिस्तानी स्कूलों में पढ़ाई जाने वाली इतिहास की किताबों में 13वीं और 16वीं सदी के इतिहास को लेकर ऐसी बातें लिखी हैं कि आप पढ़कर हैरान रह जाएंगे. वहां कि एम डी जफर की किताब 'ए टेक्स्टबुक ऑफ पाकिस्तान स्टडीज' में लिखा है, '13वीं सदी तक पाकिस्तान के दायरे में पूरा उत्तर भारत और बंगाल था.


अलाउद्दीन खिलजी की हुकूमत में पाकिस्तान का दायरा बढ़कर दक्षिण तक पहुंच गया था और उसमें मध्य भारत का एक बड़ा हिस्सा भी शामिल हो गया था. वहीं 16वीं सदी के इतिहास के बारे में लिखा है कि इस दौरान हिंदुस्तान तो गायब ही हो गया था और पूरी तरह पाकिस्तान में मिल गया था.' आपको शायद ये सब पढ़कर हंसी आए, लेकिन वहां के स्कूलों में बच्चों को यही पढ़ाया जा रहा है.


पाकिस्तान के बारे में क्या लिखा है


पूरी दुनिया को पता है कि पाकिस्तान 14 अगस्त 1947 को वजूद में आया. लेकिन पाकिस्तान के स्कूलों में इसे लेकर एक अलग ही झूठ परोसा जा रहा है. वहां के स्कूलों में पढ़ाई जाने वाली एम डी जफर की किताब 'ए टेक्स्टबुक ऑफ पाकिस्तान स्टडीज' में लिखा है, 'पाकिस्तान पहली बार वजूद में तब आया, जब मुहम्मद बिन कासिम ने सिंध और मुल्तान को फतह किया था. जबकि, 11वीं सदी के गजनवी साम्राज्य में आज के पाकिस्तान और अफगानिस्तान थे. और 12वीं सदी में गजनवियों के हाथ से अफगानिस्तान निकल गया और उनकी हुकूमत केवल पाकिस्तान तक रह गई.'


जबकि, पाकिस्तान के वजूद की सच्चाई ये है कि इस नाम का विचार सबसे पहले चौधरी रहमत अली के दिमाग में आया था. वहीं चौधरी रहमत अली का जन्म 16 नवंबर 1897 को पंजाब के बालाचौर में हुआ था. यानी जिस पाकिस्तान का 1900 से पहले नामोनिशान नहीं था, उस पाकिस्तान के बारे में वहां के स्कूलों में पढ़ाया जा रहा है कि ये वजूद में तब आया जब मुहम्मद बिन कासिम ने सिंध और मुल्तान को फतह किया था.


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