पाकिस्तान का वो राष्ट्रपति जो ब्लैक मैजिक से बचने के लिए रोज देता था काली बकरी की कुर्बानी
2008 में जब बेनजीर भुट्टो की हत्या हुई और वो पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने तो ना जाने कहां से उनके अंदर काले जादू को लेकर एक डर बैठ गया. बाद में उन्होंने इससे बचने के लिए एक टोटका अपनाना शुरू कर दिया.
अंधविश्वास और काला जादू इंसानी सभ्यता के साथ सदियों से हैं. हालांकि, आज के युग में इनका इस्तेमाल और इन पर विश्वास उस तरह का नहीं है जैसा कि इतिहास में था. लेकिन आज भी कुछ लोग ऐसे हैं जो इस पर विश्वास रखते हैं और सोचते हैं कि इसके सहारे उनका कोई रुका हुआ काम हो सकता है या फिर कोई इस काली शक्ति से उनका बुरा कर सकता है. पाकिस्तानी के बड़े नेता भी इस बात को मानते थे. वो काले जादू से इतना डरते थे कि उससे बचने के लिए वो लगभग हर रोज एक काली बकरी की कुर्बानी देते थे.
कौन थे वो नेता
हम जिनकी बात कर रहे हैं उनका नाम आसिफ अली जरदारी है. आसिफ अली जरदारी का जन्म 26 जुलाई 1955 को कराची में सिंध-बलोच जरदारी कबीले में हुआ था. आसिफ अली के पिता हाकिम अली अपने कबीले के सरदार थे, यही वजह थी कि आसिफ अली बचपन से लीडर वाली भूमिका में थे. इनकी पत्नी बेनजरी भुट्टो थीं जो पाकिस्तान की प्रधानमंत्री रह चुकी हैं. बेनजीर भुट्टो की 2008 में जब हत्या हुई तो उसके बाद आसिफ अली जरदारी पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने.
काले जादू से बचने के लिए कुर्बानी
ऐसे तो आसिफ अली जरदारी अच्छे घर से थे, लेकिन राजनीति में उनका करियर नहीं बन रहा था. 1983 में जब वो सिंध के नवाबशाह से डिस्ट्रिक काउंसिल का चुनाव लड़े तो हार गए. इसके बाद उन्होंने राजनीति छोड़ कर रियल स्टेट की तरफ हाथ आजमाया. हालांकि, बाद में बेनजीर भुट्टो से शादी के बाद वो फिर से राजनीति में दिलचस्पी लेने लगे. लेकिन 2008 में जब बेनजीर भुट्टो की हत्या हुई और वो पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने तो ना जाने कहां से उनके अंदर काले जादू को लेकर एक डर बैठ गया. बाद में उन्होंने इससे बचने के लिए एक टोटका अपनाना शुरू कर दिया.
कहा जाता है कि उन दिनों वो किसी भी बड़े काम से पहले एक टोटका अपनाते. पाकिस्तान की न्यूज एजेंसी द डॉन ने इस पर एक रिपोर्ट की है. इस रिपोर्ट में उसने दावा किया है कि आसिफ अली जरदारी को काले जादू से इतना डर था कि उनके घर में लगभग हर रोज एक काली बकरी की कुर्बानी दी जाती थी ताकि वो काले जादू से बच सकें.
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