तालिबान को बनाने में पाकिस्तान ने क्यों की थी मदद, क्या है इस शब्द का असली मतलब?
हमें 90 के दशक में चलना होगा. 1990 में सोवियत संघ अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुला रहा था. ठीक इसी समय पाकिस्तानी मदरसों में तालिबान का जन्म हुआ था. तालिबान को शुरुआती फंडिंग सऊदी अरब से मिली.
पश्तो जुबान में छात्रों को 'तालिबान' कहा जाता है. ऐसे छात्र जो इस्लामिक कट्टरवाद से पूरी तरह प्रेरित हों. यूं तो इस संगठन की कहानी काफी पुरानी है, लेकिन आज से करीब तीन साल पहले 2021 में यह संगठन चर्चा में तब आया जब अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना वापस बुलाई गई. मौके का फायदा उठाकर तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया. बीते तीन साल में तालिबान अफगानी महिलाओं पर लागू किए गए इस्लामिक कानूनों को लेकर चर्चा में रहा, लेकिन अब यह संगठन एक बार फिर चर्चा में है. वजह से पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच जंग जैसे हालातों का पनपना.
तालिबान का उदय कैसे हुआ और पाकिस्तान ने इसकी मदद क्यों की? यह जानने के लिए हमें फ्लैशबैक में जाना होगा. हालांकि इससे पहले कि हम अतीत में जाएं, हमें मौजूदा हालातों को जानना जरूरी है. पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच डूरंड लाइन पर युद्ध जैसे हालात बने हुए हैं. दरअसल, TTP आतंकियों ने पाकिस्तान के 16 सैनिकों की हत्या कर दी थी, जिसके बाद पाकिस्तानी एयरफोर्स ने अफगानिस्तान के पक्तिया और खोस्त प्रांत पर एयर स्ट्राइक की. इस हमले में 50 लोगों की जान चली गई. हमले बाद अफगानिस्तान ने भी जवाबी कार्रवाई की. अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज तालिबान ने दावा किया है कि उसने हमला कर डूरंड लाइन से सटी पाकिस्तानी सेना की दो चौकिंयों पर कब्जा कर लिया है. इस हमले में 19 पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया गया है.
अब फ्लैशबैक में चलिए
हमें 90 के दशक में चलना होगा. 1990 में सोवियत संघ अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुला रहा था. ठीक इसी समय पाकिस्तानी मदरसों में तालिबान का जन्म हुआ. कहा जाता है कि कट्टर इस्लामी विद्वानों ने पाकिस्तानी मदरसों में इसकी बुनियाद खड़ी की. शुरुआती दौर में तालिबान ने अफगानिस्तान और पाकिस्तान के पश्तून इलाके में कट्टरपंथी इस्लामी कानून लागू करने को लेकर अंदोलन छेड़ा. इस पूरे आंदोलन की फंडिंग सऊदी अरब ने की. धीरे-धीरे दक्षिण पश्चिम अफगानिस्तान में तालिबान का प्रभाव तेजी से बढ़ा और सितंबर, 1995 में तालिबान ने ईरान की सीमा पर लगे हेरात प्रांत पर कब्जा कर लिया. इसके ठीक एक साल बाद तालिबान ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर भी कब्जा कर लिया और अफगानिस्तान की सत्ता से राष्ट्रपति बुरहानुद्दीन रब्बानी को बेदखल कर दिया.
पहले अमेरिका का मिला समर्थन फिर बने दुश्मन
कहा जाता है कि शुरुआती दौर में सोवियत संघ से गुरिल्ला युद्ध लड़ रहे तालिबानी लड़ाकों को अमेरिका ने मदद दी. उन्हें हथियार और पैसा दिया. धीरे-धीरे यह संगठन मजबूत होता गया. हालांकि, जब 9/11 हमला हुआ तब तालिबान पर आतंकियों को पनाह देने के आरोप लगे. इसके बाद अमेरिका उसके खिलाफ हो गया. उसने अफगानिस्तान से तालिबान को खदेड़ने के लिए सेना भेजी और 2001 में तालिबान को उसने अफगानिस्तान की सत्ता से बाहर कर दिया.
पाकिस्तान ने ही जिंदा रखा तालिबान
अमेरिका और मित्र देशों का इरादा तालिबान को पूरी तरह खत्म करने का था. उसने काबुल की सत्ता से तो तालिबान को हटा दिया था, लेकिन पाकिस्तान से सटे इलाकों में तालिबान को पाकिस्तान के समर्थन ने जिंदा रखा. हालांकि, पाकिस्तान से बात से लगातार इनकार करता है, लेकिन यह बात सच है कि तालिबानी आंदोलन पाकिस्तान के मदरसों से ही निकला था और जब अफगानिस्तान पर तालिबान का नियंत्रण था, तब पाकिस्तान दुनिया के उन तीन देशों में शामिल था, जिसने तालिबानी सरकार को मान्यता दी थी. पाकिस्तान के अलावा तालिबान को सऊदी अरब संयुक्त अरब अमीरात ने भी मान्यता दी थी.
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