हरी-भरी जगह रहने वालों की लंबी होती है उम्र, इतने साल तक बढ़ जाती है, रिसर्च में हुआ खुलासा!
एक व्यक्ति की जैविक उम्र इस पर निर्भर करती है कि वो किस तरह के जीवनशैली अपनाता है. हालिया शोध में सामने आया है कि हरे-भरे वातावरण में रहने वालो की बायोलॉजिकल उम्र बाकियों के मुकाबले कम होती है.
दुनियाभर के वैज्ञानिक लागतार इसपर अध्ययन कर रहे हैं कि उम्र कैसे बढ़ाई जा सकती है. जिसके चलते कई विशेषज्ञों ने अमरता के बारे में बात की है. हालांकि, अमरता का फॉर्मूला अभी तक वैज्ञानिकों के हाथ तो नहीं लगा, लेकिन लंबी उम्र पाने का एक सरल और सुंदर तरीका पता चला है. नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के हालिया शोध में यह दावा किया गया है कि हरे-भरे इलाकों में रहने वाले लोगों में कई जैविक और मॉलिक्यूलर परिवर्तन होते हैं, जिससे उनकी जैविक उम्र कम होती है और क्रोनोलॉजिकल यानी वास्तविक उम्र बढ़ जाती है. इस अध्ययन के नतीजे साइंटिफ़िक एडवांसेज पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं.
बायोलॉजिकल उम्र और क्रोनोलॉजिकल उम्र
एक व्यक्ति की जैविक उम्र इस पर निर्भर करती है कि वो किस तरह के जीवनशैली अपनाता है. इस प्रकार, जैविक उम्र में वृद्धि या कमी हो सकती है. यदि बायोलॉजिकल उम्र, क्रोनोलॉजिकल उम्र से कम होती है, तो लोग जल्दी बुज़ुर्ग हो जाएंगे. बुढ़ापे में होने वाली सभी बीमारियां उन्हें पहले ही प्रभावित करेंगी और साथ ही मौत की संभावना भी बढ़ जाएगी.
हरी-भरी जगहों पर रहने से बढ़ती है उम्र
विशेषज्ञ मानते हैं कि बायोलॉजिकल उम्र यदि वास्तविक आयु से कम होती है, तो व्यक्ति अन्य लोगों की तुलना में अधिक समय तक युवा दिखता है. पहले इस उम्र को कम करने के लिए हरा-भरा आहार और व्यायाम करने की सलाह दी जाती थी. लेकिन खाद्य पदार्थों का सेवन ही नहीं, हरी-भरी जगहों पर निवास करने से भी उम्र बढ़ती है.
900 लोगों पर लगभग 20 साल चला शोध
इस शोध के लिए अमेरिका के 4 शहरों को चुना गया गया, जहां दो अलग-अलग पर्यावरणों में निवास करने वाले लोग शामिल थे. लगभग 900 व्यक्तियों पर इस शोध का आयोजन 2 दशक तक किया गया. इसका उद्देश्य था पता लगाना कि हरे पर्यावरण के लम्बी अवधि वाले प्रभाव का स्वास्थ्य पर क्या असर होता है.
कितने साल बढ़ जाती है उम्र?
शोध टीम ने इन व्यक्तियों के डीएनए की जांच करके एक रासायनिक परिवर्तन, जिसे मिथाइलेशन कहा जाता है, को देखा. यह प्रक्रिया आमतौर पर डीएनए में होती है, लेकिन आयु बढ़ने के साथ इसमें परिवर्तन दिखाई देने लगते हैं. इसे एपिजेनेटिक क्लॉक के नाम से जाना जाता है. यह घड़ी हमारे युवा या बुजुर्ग होने का संकेत देती है. शोध में पता चला कि जो लोग हरे इलाकों के पास रहते थे, उनकी एपिजेनेटिक क्लॉक धीरे-धीरे बढ़ रही थी. बाकियों के मुकाबले उनकी उम्र 2.5 साल कम लग रही थी. वैज्ञानिक अभी और व्यापक रूप से इसपर शोध कर रहे हैं.
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