अफ्रीका के इस जनजाति के लोग पूरी जिंदगी में सिर्फ एक दिन नहाते, इस तरीके से रखते हैं शरीर को साफ
दुनिया में अलग-अलग जनजाति के लोग मौजूद हैं. इन सभी लोगों की रीति रिवाज, मान्यताएं अलग हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि अफ्रीका में एक जनजाति ऐसी भी है, जो पूरी जिंदगी नहाती नहीं है. जानिए....
दुनिया के तमाम देशों में अलग-अलग जनजाति के लोग रहते हैं. इन सभी जनजाति के लोगों की वेशभूषा, खान-पान, रहन-सहन और रीति रिवाज, मान्यताएं अलग हैं. लेकिन आज हम आपको एक ऐसी जनजाति के बारे में बताने वाले हैं, जो पूरी जिंदगी में सिर्फ एक बार नहाते हैं. अब आप सभी लोगों के दिमाग में ये सवाल आ रहा होगा कि फिर ये खुद को कैसे साफ रखते हैं और तमाम बीमारियों से कैसे खुद को बचाते हैं. आज हम आपको बताएंगे ये कौनसी जनजाति है और खुद को कैसे साफ रखती है.
अफ्रीका की जनजाति
दुनिया में ज्यादातर जनजाति और आदिवासी समुदायों के लोगों की अपने रीति रिवाज होते हैं. इतना ही नहीं ये लोग आज भी हजारों साल पुरानी परंपराओं का जस का तस पालन कर रहे हैं. बता दें कि अफ्रीका महाद्वीप के नामीबिया में हिंबा नाम की एक जनजाति है, जो ताउम्र नहाती ही नहीं है. इतना ही नहीं जनजाति के लोगों के नहाने पर सख्त पाबंदी लागू है. वहीं जनजाति की महिलाएं पूरी जिंदगी में सिर्फ अपनी शादी के दिन ही नहाती हैं. यही नहीं समुदाय के लोग अपने कपड़े धोने के लिए भी पानी का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं. इस जनजाति की कुल आबादी करीब 50,000 है. बता दें कि समुदाय के ज्यादातर लोगों का समय खेतों में गुजरता है.
खुद को कैसे रखते हैं साफ?
सबसे बड़ा सवाल ये है कि हिंबा जनजाति के लोग जब नहाते नहीं हैं, फिर खुद को साफ सुथरा कैसे रखते हैं. बता दें कि जनजाति के लोग खुद को संक्रमण से बचाने के लिए धुएं का स्नान करते हैं. वहीं महिलाएं खुद को साफ रखने के लिए खास तरीका अपनाती हैं. वे खास जड़ी-बूटियों को पानी में उबालती हैं और भाप से खुद को साफ रखती हैं. इससे उनके शरीर से बदबू नहीं आती है. यही नहीं वे धूप से त्वचा को सुरक्षित रखने के लिए खुद से बनाया हुआ खास लोशन भी लगाती हैं. ये लोशन जानवरों की चर्बी और खास खनिज हेमाटाइट से बनता है.
बच्चे का जन्म भी खास
हिंबा जनजाति में बच्चों के पैदा होने को लेकर भी काफी अलग परंपरा निभाई जाती है. इस जनजाति में जन्म की तारीख बच्चे की दुनिया में आने के बाद नहीं मानी जाती है. जनजाति की कोई भी महिला जब से बच्चे के बारे में सोचना शुरू करती है, तभी से बच्चे का जन्म मान लिया जाता है. मां बनने के लिए जनजाति की महिलाओं को बच्चों से जुड़े गीत सुनने की राय दी जाती है. इसके बाद महिलाएं पेड़ के नीच बैठकर बच्चों से जुड़े गीत सुनती हैं. इतना ही नहीं उन्हें खुद भी बच्चों से जुड़ा एक गीत बनाना होता है. इसके बाद महिला गीत अपने साथी को गाकर सुनाती है. इसके अलावा महिला और पुरूष दोनों संबंध बनाते हुए भी इस गीत को गाते हैं. जब महिला गर्भवती हो जाती है, तो जनजाति की दूसरी महिलाओं को यही गीत सिखाती है. वहीं बच्चे के जन्म से मृत्यु तक समय-समय पर उसे यही गीत सुनाया जाता है.
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