तमिलनाडु का करूर जिले का महालक्ष्मी मंदिर, जो मेट्टू महाधनपुरम में स्थित है, हर साल तमिल महीने "अडी" के दौरान हजारों श्रद्धालुओं का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है. इस खास समय पर लोग मंदिर में आकर नारियल तोड़ने के अनोखे अनुष्ठान में भाग लेते हैं, जिसमें वो अपने सिर पर नारियल फोड़ते हैं. ये अनुष्ठान एक पुरानी परंपरा और विश्वास का प्रतीक है, जो आज भी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है.


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क्या है सिर पर नारियल फोड़ने का इतिहास?


इस अजीबोगरीब रिवाज की जड़ें ब्रिटिश राज के समय से जुड़ी हुई हैं. ब्रिटिश साम्राज्य में उस समय भारत में रेलवे ट्रैक बिछाने का प्रस्ताव रखा गया था और इसका रास्ता महालक्ष्मी मंदिर से गुजरता था. इस प्रस्ताव से स्थानीय लोग काफी परेशान और चिंतित थे, क्योंकि वो अपने मंदिर की रक्षा करना चाहते थे. मंदिर की धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को देखते हुए, उन्होंने रेलवे ट्रैक को मंदिर के ऊपर से गुजरने से रोकने के लिए लड़ाई लड़ी.


ऐसे में ब्रिटिश अधिकारियों ने स्थानीय लोगों की श्रद्धा और उनके विश्वास को परखने के लिए एक अनूठी चुनौती रखी. उन्होंने ग्रामीणों से कहा कि यदि वो सिर पर नारियल फोड़ने में सक्षम हो जाते हैं, तो रेलवे ट्रैक को मंदिर के पास से गुजरने की अनुमति नहीं दी जाएगी. ये चुनौती स्थानीय लोगों के लिए एक गंभीर परीक्षा थी, लेकिन उन्होंने अपने विश्वास और आस्था के बल पर इसे स्वीकार किया, तभी से ये परंपरा जारी है.


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कैसे निभाई जाती है नारियल फोड़ने की परंपरा?


नारियल फोड़ने की ये परंपरा श्रद्धालुओं की भक्ति और विश्वास को प्रदर्शित करने का एक तरीका बन गई है. अडी के महीने के दौरान लोग महालक्ष्मी मंदिर में इकट्ठा होते हैं और अपनी श्रद्धा अर्पित करने के लिए नारियल सिर पर फोड़ते हैं. यह मान्यता है कि इस अनुष्ठान के माध्यम से वे मंदिर और देवी महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त की जा सकती है और उनके जीवन में अच्छे भाग्य की प्राप्ति हो सकती है.                                      


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