देश में चुनाव के दौरान करोड़ों-अरबों रुपये राजनीतिक पार्टियां खर्च करती हैं. इसके अलावा हर चुनाव में करोड़ों रुपये कैश जब्त होने की तस्वीरें भी सामने आती है. आसान भाषा में कहे तो किसी भी राज्य या फिर लोकसभा के चुनाव में पानी की तरह पैसे बहाए जाते हैं. लेकिन आज हम आपको बीते पांच चुनावों का आंकड़ा बताने वाले हैं. ये आंकड़ा सुनकर आप कहेंगे कि किसी छोटे देश की पूरी अर्थव्यवस्था इतनी होगी. जानिए क्या कहता है आंकड़ा. 


चुनाव में खर्च


देश में आगामी कुछ महीनों के बाद लोकसभा चुनाव होने वाला है. चुनाव प्रचार के दौरान सभी पार्टियां प्रचार पर बहुत पैसा खर्च करती हैं. जानकारी के मुताबिक पिछले लोकसभा चुनाव में करीब 8 अरब डॉलर यानी 55 हजार करोड़ रुपये खर्च हुए थे. इस चुनाव ने खर्च के मामले में दुनियाभर के देशों के सभी रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए थे. 


जानकारी के मुताबिक पिछले लोकसभा चुनाव की तरह इस बार भी भारत का चुनाव दुनिया में सबसे महंगा होने वाला है. यदि ग्राम पंचायत से लेकर लोकसभा तक के चुनावों का एक बार का खर्च जोड़ दें, तो यह 10 लाख करोड़ रुपये को पार कर जाता है. बता दें कि  कई बड़े राज्यों का बजट मिलाने पर भी इतनी रकम नहीं होती है. वहीं सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज के मुताबिक अगर सारे चुनाव एक हफ्ते में होते हैं तो तीन से पांच लाख करोड़ रुपये तक की बचत हो सकती है. रिपोर्ट के मुताबिक 2024 के लोकसभा चुनाव में 1.20 लाख करोड़ रुपये खर्च होने की उम्मीद है. इसमें भी सबसे बड़ा हिस्सा उम्मीदवारों के प्रचार अभियान का होता है. 


विधानसभा चुनावों पर सर्वाधिक खर्च


बता दें कि देशभर में 4,500 विधानसभा सीटें हैं. इनका एक बार चुनाव कराने का खर्च तीन लाख करोड़ रुपये आता है. वहीं महानगरपालिका की कुल 500 सीटें हैं. इनके चुनाव पर एक लाख करोड़ रुपये खर्च आता है. इसके अलावा जिला परिषद की 650, मंडल की 7,000 और ग्राम पंचायत की 2.5 लाख सीटों पर चुनाव में करीब 4.30 लाख करोड़ खर्च होते हैं.


70 लाख रुपये तक खर्च की सीमा


लोकसभा चुनाव में एक उम्मीदवार 50 लाख से 70 लाख रुपये के बीच खर्च कर सकता है. हालांकि कई बार ये इस बात पर निर्भर करता है कि वह उम्मीदवार किस राज्य से चुनाव लड़ रहा है. अरुणाचल प्रदेश, गोवा और सिक्किम (खर्च सीमा 54 लाख) को छोड़कर अन्य सभी राज्यों में एक प्रत्याशी प्रचार पर अधिकतम 70 लाख खर्च कर सकता है. दिल्ली के लिए यह सीमा 70 लाख और अन्य केंद्र शासित प्रदेशों के लिए 54 लाख है. वहीं विधानसभा चुनाव के लिए अधिकतम खर्च सीमा 20 लाख से 28 लाख रुपये के बीच है.


पिछले पांच चुनावों का आंकड़ा


चुनाव में खर्च हर दिन बढ़ता जा रहा है. पिछले 2019 चुनाव में ये खर्च 550 अरब रुपये तक पहुंच गया था. पिछले पांच चुनावों की ही तुलना करने पर पता चलता है कि ये खर्च पांच गुना से अधिक बढ़ चुके हैं. बता दें कि 1999 में करीब 100 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. वहीं 2004 में 141 करोड़ और 2009 में 200 करोड़ और 2014 में 300 करोड़ खर्च हुए थे. 


 


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