Child Adoption In India: बहुत से ऐसे लोग होते हैं जो अलग-अलग कारणों से जैविक रूप से माता-पिता बनने से से वंचित रह जाते हैं.आजकल तो सिंगल पैरेंट के बहुत से उदाहरण हैं .ऐसे में लोग माता और पिता के जीवन की अनुभूति के लिए बच्चों को गोद लेते हैं.बहुत से ऐसे लोग हैं जो बच्चे को गोद लेना चाहते हैं लेकिन इससे संबंधित कानूनी प्रक्रिया के बारे में उन्हें जानकारी नहीं है.अपने इस आर्टिकल में हम आपको किसी बच्चे को गोद लेने की कानूनी प्रक्रिया के बारे में बताएंगे-
केन्द्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण इससे संबंधित नियमों और कानूनों की देखरेख करता है.भारत में बच्चा गोद लेने के कानूनी प्रक्रिया से पहले हमें अन्य पहलुओं को समझना होगा.
गोद लेने की योग्यता-
-भारतीय नागरिक,एनआरई और विदेशी नागरिक के द्वारा भारत में किसी बच्चे को गोद लिया जा सकता है.लेकिन इन तीनों ही नागरिकों के लिए प्रक्रियाओं में अंतर है.
-इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि गोद लेने वाला स्त्री है या पुरुष साथ ही उनकी वैवाहिक स्थिति का भी कोई फर्क नहीं पड़ता (कुछ अपवादों के अलावा)
- किसी शादी-शुदा दम्पत्ति के द्वारा बच्चा गोद लेने की स्थिति में शर्त यह है कि उनकी कम से कम दो साल की स्थिर शादी होनी चाहिए.
-यह जरूरी है कि बच्चा गोद लेने वाले दंपत्ति इस फैसले को लेकर सहमत हों.किसी एक की सहमति से काम नहीं चलेगा
- बच्चे के होने वाले माता-पिता की उम्र को लेकर अलग-अलग उम्र के बच्चों के मामले में अलग-अलग मानक हैं.
कुछ सामान्य शर्तें-
- यह जरूरी है कि गोद लेने वाले दंपत्ति मानसिक,शारीरिक और भावनात्मक रूप से स्वस्थ और स्थिर हों और उन्हें ऐसी कोई गंभीर बीमारी ना हो जो उनके जीवन के लिए खतरनाक है.
-वह बच्चे के पालन-पोषण के लिए आर्थिक रूप से सक्षम होने चाहिए .
-ऐसे दंपत्ति जिनके तीन या अधिक बच्चे हैं तो वो कुछ विशेष मामलों को छोड़कर बच्चा गोद नहीं ले सकते
-अगर कोई सिंगल पैरेंट के तौर पर बच्चा गोद लेना चाहता है तो महिला होने की स्थिति में वह किसी भी लिंग के बच्चे को गोद ले सकती है लेकिन पुरूष जो सिंगल पैरेंट बनना चाहता है वह बेटी गोद नहीं ले सकता है.
-सिंगल पैरेंट की उम्र 55 साल से ज्यादा नहीं होनी चाहिए वहीं गोद लेने वाले दंपत्ति की संयुक्त उम्र 110 साल से ज्यादा नहीं होनी चाहिए.
बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया-
1-पंजीकरण: मान्यता प्राप्त भारतीय नियोजन संस्थाएं और विशेष दत्तक ग्रहण संस्थाओं में बच्चा गोद लेने संबंधी पंजीकरण किया जाता है.
2- दूसरा चरण: पंजीकरण के जो दंपत्ति बच्चा गोद लेना चाहता है उसके घर जाकर इस बात की जानकारी जुटाई जाएगी की संभावित माता-पिता बच्चे के लिए सक्षम हैं या नहीं
3- तीसरा चरण: तीसरे चरण में जब कोई बच्चा गोद देने के लिए उपलब्ध होता है तो इसके बारे में पंजीकरण कराने वाले इच्छुक माता-पिता या दंपत्ति को इसकी जानकारी दी जाती है. अगर वह बच्चे को गोद लेने के लिए दिलचस्पी रखते हैं तो उन्हें बच्चे के साथ कुछ समय सहज होने के लिए बिताने की अनुमति दी जा सकती है. इसके बाद अगर वह बच्चा गोद लेने के लिए तैयार हैं तो कुछ आवश्यक दस्तावेजों पर उन्हें हस्ताक्षर करने होते हैं.
4-इसके अलावा वकील की मदद से तमाम दस्तावेजी काम पूरे करने होते हैं.दस्तावेजों को अदालत के सामने रखने के लिए अपील भी वकील की मदद से तैयार होती है.
5- इसको लेकर अदालती सुनवाई बंद कमरे में होती है.जहां न्यायधीश बच्चे के लिए एक निश्चित धनराशि माता-पिता के द्वारा निवेश करने की बात करता है.जिसके बाद गोद लेने वाले माता-पिता या दंपत्ति को बच्चे के नाम पर धनराशि निवेश करनी पड़ती है.इसके बाद बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया पूरी हो जाती है
हालांकि इसके बाद भी 1 या 2 साल तक संस्था बच्चे से संबंधित फॉलोअप रिपोर्ट कोर्ट में रखती रहती है जिसमें बच्चे के बारें में जानकारी दी जाती है.
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