अरब सागर में हाईजैक हुए कार्गो शिप एमवी लीला नोर्फोक को भारत ने एक विशेष अभियान के तहत 24 घंटे के अंदर छुड़ा लिया. शिप में सवार 15 भारतीयों समेत सभी 21 क्रू सदस्य सुरक्षित हैं. लेकिन आज हम आपको ये बताएंगे कि हाईजैक शिप को छुड़ाने का प्रोसेस क्या होता है. शिप को छुड़ाने के लिए सरकार क्या करती है. 


क्या है मामला 


4 जनवरी 2024 के दिन भारतीय तट से करीब 4,000 किलोमीटर दूर अरब सागर में एमवी लीला नोर्फोक नाम के एक कार्गो शिप को हाईजैक कर लिया गया था. हाईजैकर्स इसे सोमालिया के करीब लेकर जाते हैं. इस शिप में 15 भारतीय समेत 21 क्रू मेंबर्स सवार थे. इसके बाद इसे छुड़ाने की जिम्मेदारी नौसेना की वॉरशिप आईएनएस चेन्नई में सवार मरीन कमांडोज यानी मार्कोस को दी जाती है. जिसके बाद 24 घंटे के अंदर खबर आती है कि हाईजैक शिप को रेस्क्यू कर लिया गया है और उसमें सवार सभी क्रू मेंबर्स सुरक्षित हैं. 


हाईजैक शिप को बचाने की जिम्मेदारी किसकी


हाईजैक होने के बाद किसी भी शिप या जहाज को बचाने की जिम्मेदारी उस देश की होती है, जिस देश के नागरिक उसमें सवार होते हैं या जिस देश का शिप होता है. ऐसी स्थिति में सरकार सबसे पहले इस घटना की सूचना उस देश की सरकार तक पहुंचाती है,जहां पर शिप हाईजैक हुआ होता है. उसके बाद सरकार स्थिति के अनुसार शिप को रेस्क्यू करने के लिए कदम आगे बढ़ाती है. सरकार इस स्थिति में सभी नागरिकों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कार्रवाई करती है. कुछ स्थितियों में दूसरे देश की सरकार भी ऑपरेशन को अंजाम दे सकती है. इस स्थिति में दोनों देशों का संबंध भी बहुत मायने रखता है. दोनों देशों की सरकार एक साथ भी ऑपरेशन को अंजाम दे सकती है. ऐसी स्थिति से निपटने के लिए अधिकांश देशों की अपनी फोर्स हैं.


कौन हैं मार्कोज?


भारतीय नौसेना में 1987 में इलीट कमांडो फोर्स मार्कोज का गठन हुआ था. यह सुरक्षाबल देश के अग्रिम सुरक्षाबल नेशनल सिक्योरिटी गार्ड्स (एनएसजी), वायुसेना की गरुड़ और थलसेना की पैरा स्पेशल फोर्स की तर्ज पर गठित किए गए. मार्कोज या मरीन कमांडो फोर्स में नौसेना के उन सैनिकों से बना बल है, जिनकी ट्रेनिंग सबसे कठिन होती है. मार्कोज के काम करने का तरीका बिल्कुल अमेरिका की इलीट नेवी सील्स जैसा है. 


कैसे चुने जाते हैं मार्कोज कमांडो?


इसमें भारतीय नौसेना में काम कर रहे उन युवाओं को चुना जाता है, जिनकी प्रोफाइल सबसे अच्छी होती है. इसके लिए उन जवानों का फिजिकल और बौद्धिक प्रशिक्षण होता है. बताया जाता है कि चयन के दौरान जवानों की पहचान के लिए जो टेस्ट होते हैं, 80 फीसदी से ज्यादा उसी दौरान बाहर हो जाते हैं. इसके बाद सेकंड राउंड में 10 हफ्तों का टेस्ट होता है, जिसे इनिशियल क्वालिफिकेशन ट्रेनिंग कहते हैं. इसमें ट्रेनी को रात जागने, बगैर खाए-पिए कई दिनों तक अभियान में जुटे रहने लायक ताकत हासिल करने का प्रशिक्षण दिया जाता है. सैनिकों को लगातार कई दिनों तक महज दो-तीन घंटों की नींद लेते हुए काम करना पड़ता है. पहली स्क्रीनिंग को पार करने वाले 20 फीसदी लोगों में से अधिकतर इस इन टेस्ट में ही थककर बाहर हो जाते हैं. इसके बाद एडवांस ट्रेनिंग होती है. यह ट्रेनिंग तीन साल तक चलती है, इस दौरान जवानों को हथियारों-खाने पीने के बोझ के साथ पहाड़ चढ़ने की ट्रेनिंग, आसमान-जमीन और पानी में दुश्मनों का सफाया करने का प्रशिक्षण और दलदल जैसी जगहों पर भी भागने की ट्रेनिंग दी जाती है. अंत में ट्रेनिंग के दौरान जवानों को अत्याधुनिक हथियारों को चलाना सिखाया जाता है. इतना ही नहीं उन्हें तलवारबाजी और धनुष-बाण जैसे पारंपरिक हथियारों का प्रशिक्षण भी दिया जाता है. मार्कोज के लिए कमांडो को विषम से विषम परिस्थिति में केंद्रित रहना सिखाया जाता है. इ


 


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