अधिकांश घरों में दवाई जरूरत बन चुकी है. लेकिन दवाईयों का नाम इतना अजीब होता है कि अक्सर लोग इसे समझ नहीं पाते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन दवाईयों का नामकरण कैसे होता है. आज हम आपको बताएंगे कि दवाईयों का नाम कैसे रखा जाता है ? समझिए पूरा मामला.
कैसे होता नामकरण
अमेरिका में जब भी किसी दवा को स्वीकृत मिलती है, तो उसे जेनेरिक (आधिकारिक) नाम दिया जाता है. इसके बाद उसे ब्रांड नाम दिया जाता है. उदाहरण के लिए फ़ेनिटॉइन एक जेनेरिक नाम है और डाइलेंटिन उसी दवा के लिए एक ब्रांड नाम है, जो आमतौर पर उपयोग की जाने वाली एंटीसीज़र दवा है. अधिकांश परिस्थितियों में दवाओं के तीन प्रकार के नाम होते हैं, जिसमें रासायनिक नाम, सामान्य नाम और व्यापारिक नाम यानी उसका ब्रांड नाम शामिल होता है. हालांकि कंपनी कोशिश करती हैं कि वो नाम कहीं और ना मिले. इसीलिए “Qs”, “Xs” और “Zs” का उपयोग अक्सर किया जाता है.
लंबी प्रक्रिया
फाइजर की वेबसाइट के मुताबिक दवा नामकरण की प्रक्रिया लंबी और जटिल होती है. फाइजर के कस्टमर एनालिटिक्स एंड इनसाइट्स ग्रुप के वरिष्ठ प्रबंधक ट्रेडमार्क डेवलपमेंट माइकल क्विनलान के मुताबिक किसी दवा का नामकरण एक लंबी और श्रमसाध्य प्रक्रिया हो सकती है, जो दवा के सक्षम एजेंसी द्वारा अनुमोदित होने से पहले शुरू होती है. क्विनलान ने कहा कि कई मामलों में नाम के चयन और अनुमोदन प्रक्रिया से गुजरने में चार साल लग सकते हैं.
दवा के पत्ते पर क्या होती है जानकारी
दवा के पत्ते पर मैन्यूफैक्चरिंग और एक्सपायरी डेट होती है. इसके अलावा उसकी कीमत भी दर्ज होती है. इसके अलावा आप ध्यान से देखेंगे तो दवा में किन साल्ट का प्रयोग किया गया है, उसका भी जिक्र पत्ते पर होता है. कंपनियों ने कुछ दवाईयों पर लाल रंग की पट्टी बनाई हुई है, इसका मतलब होता है कि इन दवाईयों को किसी डॉक्टर से जरूर पूछकर खाए, क्योंकि कई बार लोग अपने मन से दवाई खा लेते हैं. बता दें कि कुछ दवाइयों के नाम के सबसे ऊपर Rx का निशान होता है. इसका मतलब होता है कि ये दवाई सिर्फ उसी मरीज को दी जा सकती है, जिसे डॉक्टर ने अपने पर्चे पर लिखकर दिया है. NRx का अर्थ होता है कि ऐसी दवाइयों को लेने की सलाह सिर्फ वही डॉक्टर दे सकते हैं. जिन्हें इसे प्रिस्क्राइब करने का लाइसेंस प्राप्त है. वहीं XRx लिखा होने पर दवाई मेडिकल स्टोर से नहीं ले सकते हैं, ये सिर्फ लाइसेंस प्राप्त डॉक्टर के पास मिलेगी.
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