Rajeev Gandhi Case: सोनिया गांधी की माफी की वजह से उम्रकैद में बदल गई मौत की सजा! जानिए इन दोनों में क्या है अंतर
राजीव गांधी की हत्या के दोषियों को मौत की सजा मिलने के बाद उनकी सजा को उम्रकैद में बदला गया था. आखिरकार कोर्ट ने उन्हें रिहा करने का फैसला सुनाया है. आइए जानते हैं इन दोनो सजाओं में क्या अंतर है.
Rajeev Gandhi Case : 21 मई 1991 को एक चुनावी रैली के दौरान तमिलनाडु में एक आत्मघाती हमले में राजीव गांधी की हत्या कर दी गई थी. सात साल की कानूनी कार्यवाही के बाद 28 जनवरी 1998 को टाडा कोर्ट ने सभी 26 आरोपियों को मौत की सजा सुनाई थी. जिसमें से 19 दोषियों को सुप्रीम कोर्ट ने रिहा कर दिया था, जबकि 7 दोषियों की फांसी की सजा को बरकरार रखा गया था. बाद में इसे उम्रकैद में बदल दिया गया. क्या आपको पता है मौत की सजा और उम्रकैद एक दूसरे से कैसे अलग हैं? अगर नहीं, तो चलिए आज इनके बीच अंतर को जानते हैं.
सोनिया गांधी ने किया था माफ
सात दोषियों में से तीन की फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया, जबकि मुरुगन, संथन, नलिनी और एजी पेरारिवलन की फांसी की सजा को बरकरार रखा गया. गिरफ्तारी के समय नलिनी 2 माह की गर्भवती थी. नलिनी ने जेल में किताब लिखी थी, जिसमें उसने इसका जिक्र करते हुए कहा कि सोनिया गांधी ने कहा था कि “उसके इस जुर्म के लिए मैं उस बच्चे को कैसे दोषी ठहरा दूं, वो तो अभी इस दुनिया में आया भी नहीं है, इसलिए मैं उसे माफ करती हूं.” सोनिया गांधी ने नलिनी के लिए अदालत से क्षमादान का आग्रह किया था. अंत में साल 2000 में नलिनी की फांसी की सजा को भी माफ कर दिया गया. आखिरकार बाकी तीनों दोषियों की फांसी की सजा को भी आजीवन कारावास में बदल दिया गया.
क्या है मृत्युदंड?
मृत्युदंड को डेथ पेनल्टी और कैपिटल पनिशमेंट के नाम से भी जाना जाता है. किसी भी अपराध के लिए दी जाने वाली सजाओं में मृत्युदंड सज़ा का सबसे कठोरतम रूप है. इस सजा को मानवता के विरुद्ध नृशंसता और जघन्य अपराधों के लिये दिया जाता है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति को दया याचिका भेजकर आजीवन कारावास या क्षमा में रूपांतरित किया जा सकता है. भारतीय दंड संहिता में कुछ अपराधों के लिये अपराधियों को मौत की सज़ा दी जा सकती है: हत्या (धारा 302), डकैती (धारा 396), आपराधिक षड्यंत्र (धारा 120B), भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करना या युद्ध करने का प्रयत्न करना या युद्ध करने का दुष्प्रेरण करना (धारा 121), विद्रोह का दुष्प्रेरण यदि उसके परिणामस्वरूप विद्रोह किया जाए (धारा 132).
क्या होती है उम्रकैद?
जब भी किसी व्यक्ति को उम्र कैद की सजा होती है तो उसका मतलब यह होता है कि वह व्यक्ति जिंदगी भर जेल में रहेगा. कई मामलों में ऐसा देखने को भी मिलता है कि कई व्यक्ति जेल में उम्र कैद की सजा काट रहे थे, लेकिन उन्हें जेल प्रशासन ने से 14 से 20 सालों के अंदर ही जेल से रिहा कर दिया गया ऐसा क्यों होता है? इसकी व्याख्या सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कई बार की है. दरअसल, राज्य सरकार के पास संविधान के दिए गए कुछ विशेष अधिकार हैं. जिनका इस्तेमाल किसी भी उम्र कैद की सजा काटने वाले कैदी की सजा को कम करवाने में किया जा सकता है. IPC की धारा 55 और 57 में सरकारों को सजा को कम करने का अधिकार दिया गया है.
राष्ट्रपति और राज्यपाल को विशेषाधिकार
अगर किसी व्यक्ति को उम्र कैद की सजा हुई है तो न्यायालय की कार्यवाही पूरी होने के बाद वह राष्ट्रपति से दया की गुहार लगा सकता है. उम्र कैद पाए व्यक्ति की सजा को राष्ट्रपति और राज्यपाल भी कम कर सकते हैं. भारतीय संविधान का आर्टिकल 72 इसके लिए राष्ट्रपति को विशेष अधिकार देता है I इसके अलावा संविधान के आर्टिकल 161 में राज्यपाल को भी यह अधिकार है कि वह उम्र कैद की सजा काटने वाले अपराधी की सजा को कम कर सके.
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