भारत में एक ऐसा गांव है, जिसका विशेषता है कि यहां के लोग अपनी संस्कृति, खानपान, लोक संगीत और पहनावे को संजो कर रखते हैं। लेकिन दुर्भाग्यवश, इस गांव में असमय मौत होने से इसे "विधवाओं का गांव" भी कहा जाता है। यहां की विधवा महिलाएं अपने परिवार का पालन पोषण करने के लिए खुद को मेहनती मजदूर के रूप में अपनाने को मजबूर हैं। उन्हें दिन में 10-10 घंटे बलुआ पत्थर तोड़ने और तराशने का काम करना पड़ता है।
कौन सा है ये गांव?
भारत के राजस्थान राज्य के बूंदी जिले के बुधपुरा गांव में रहने वाली विधवा महिलाओं का जीवन संघर्षों से भरा है, और अक्सर यह सवाल उठते हैं कि इस गांव के पुरुषों की असामयिक मौत का कारण क्या होता है? इस सवाल के जवाब के लिए शोध या अध्ययन की जरूरत नहीं है, क्योंकि ज्यादातर लोग इस गांव के पुरुषों की असामयिक मौत के पीछे के कारणों को जानते हैं। कई रिपोर्ट्स में बताया गया है कि इस गांव में काम करने वाले पुरुषों की मृत्यु के पीछे खदानों का हाथ है। यहां की खदानों में काम करने से पुरुषों को सिलिकोसिस नाम की जानलेवा बीमारी हो जाती है। बड़ी संख्या में मरीजों को समय पर उचित इलाज नहीं मिलने से उनकी मृत्यु हो जाती है।
बलुआ पत्थरों को तराशने का होता है काम
यहां की सभी महिलाएं अपने पतियों की मृत्यु के बावजूद भी अपने बच्चों को पालने के लिए खदानों में काम करने को मजबूर हैं. बुधपुरा में बलुआ पत्थरों को तराशने का काम बहुत बड़े पैमाने पर होता है, और इस काम में निकलने वाली सिलिका डस्ट से उनके फेफड़ों में संक्रमण हो जाता है। बेहद दुर्भाग्यवश, मरीजों को समय पर सही इलाज नहीं मिलने से उन्हें सांस लेने में और दिक्कतें होती हैं और उन्हें जानलेवा बीमारियां हो जाती हैं। इस गांव में दर्जनों महिलाएं हैं, जिन्होंने खदानों में काम करते हुए अपने पतियों को खो दिया है।
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