Raksha Bandhan 2023: भारत में हर छोटे और बड़े त्योहार को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. खासतौर पर जब ये त्योहार भाई-बहन से जुड़ा हो तो जश्न और भी बड़ा हो जाता है. इस दिन बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र की कामना करती हैं और उनकी कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती हैं. इसके साथ ही भाई भी अपनी बहन को वादा करते हैं कि वो जिंदगीभर उसकी रक्षा करेंगे. इस त्योहार को लेकर कई ऐसी कहानियां भी हैं, जिनकी आज भी मिसालें दी जाती हैं. ऐसी ही एक कहानी हिंदू-मुस्लिम धार्मिक एकता की भी है. 


राखी से एकजुट हुए लोग
कई दशकों पहले जब अंग्रेजों का शासन था तो उनका भारत पर राज करने का एक ही तरीका था, जिसमें वो अलग-अलग धर्मों और समुदायों को एक दूसरे के खिलाफ कर देते थे. इसे डिवाइड एंड रूल कहा जाता है. हिंदू-मुस्लिम समुदाय के बीच भी अंग्रेजों ने एक ऐसी ही खाई पैदा कर दी थी, जिसका दंश आज भी देश झेल रहा है. इस सबके बीच राखी के त्योहार ने ऐसा काम कर दिया था, जिसने इस खाई को पाटने का काम कर दिया. 


टैगोर ने निकाला जुलूस 
साल 1905 में गुरु रवींद्रनाथ टैगोर ने अंग्रेजों की नीति के खिलाफ हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए जुलूस का आह्वान किया, जब अंग्रेज सरकार ने बंगाल विभाजन का आदेश पारित किया था. इस दौरान सभी समुदायों से अपील की गई कि वो फूट डालो वाली राजनीति में न फंसे... जुलूस में सभी के हाथों में राखी के धागे थे, जिन्हें दूसरे समुदाय के लोगों को बांधा गया था. इस दौरान महिलाएं छतों से जुलूस पर चावल फेंककर उसका स्वागत करती थीं. टैगोर ने इस तरह से बंगाल में हो रहे विभाजन को रोकने का काम किया, इस दौरान एक रक्षा सूत्र ने लोगों को एकजुट करने का काम कर दिया था. सड़कों और चौराहों पर हिंदू अपने मुस्लिम भाइयों को राखी बांध रहे थे, इसीलिए इसे आज एक मिसाल के तौर पर याद किया जाता है. 



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