इस्लाम के पवित्र महीने यानी रमजान की शुरुआत होने वाली है. लेकिन पहला रोजा किस दिन रखा जाएगा उसे लेकर भारत में अभी भी चर्चा चल रही है. दरअसल, इस्लामिक देश सऊदी अरब में 21 मार्च मंगलवार को चांद देखा जाएगा... यानी अगर वहां आज चांद देखा गया तो कल यानि बुधवार को पहला रोजा होगा. अगर सऊदी अरब में बुधवार को पहला रोजा होगा तो फिर भारत में गुरुवार को पहला रोजा होगा. क्योंकि दशकों से एक परंपरा चली आ रही है कि भारत खाड़ी देश सऊदी अरब से रोजा के मामले में एक दिन पीछे चलता है. लेकिन अब सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों होता है. जब चांद एक है, पाक महीना रमजान एक है... पूरी दुनिया के मुसलमान एक हैं तो आखिर क्यों सऊदी अरब और भारत के लोग अलग-अलग दिनों पर रोजा की शुरुआत करते हैं.
भारत और सऊदी में अलग-अलग दिनों पर रोजा क्यों शुरू होता है
इस बात को लेकर काफी उहापोह है. लेकिन इस असमंजस का पूरा खेल एक कैलेंडर पर आकर टिक जाता है. दरअसल, इस्लामिक हिजरी कैलेंडर को पूरी दुनिया के मुसलमान मानते हैं और उसी के आधार पर रमजान महीने की शुरुआत करते हैं. भारतीय मुसलमान भी इसी कैलेंडर के आधार पर अपने रोजा की शुरुआत करते हैं. लेकिन सऊदी अरब चंद्र महीने की गणना के लिए एक अलग विधि का पालन करता है और यही वजह है कि दशकों से सऊदी अरब और भारत के मुसलमान अलग-अलग दिनों पर रोजा शुरू करते हैं. कुछ विद्वान इसके पीछे भौगोलिक कारण को भी वजह मानते हैं. उनका मानना है कि सऊदी अरब और भारत अलग-अलग अक्षांश पर स्थित हैं, इसलिए दोनों देशों में सूर्योदय और चंद्रोदय यानी चांद के निकलने का समय अलग-अलग है. सऊदी अरब का अक्षांश (23.8859° N, 45.0792° E) और भारत का अक्षांश (20.5937° N, 78.9629° E)
बीबीसी में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, सऊदी अरब में जिस दिन चांद दिखता है उसके 1 दिन बाद बांग्लादेश और भारत में दिखाई देता है. यही वजह है कि भारत के लोग सऊदी अरब के मुकाबले 1 दिन बाद अपने रोजे की शुरुआत करते हैं. बांग्लादेश एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी के वाइस प्रेसिडेंट एफआर सरकार का भी यही कहना है कि चांद पूरी दुनिया में दूरी की वजह से एक ही समय पर नहीं दिखाई देता है. यही वजह है कि लोग जब अपनी नंगी आंखों से चांद देख लेते हैं...उसके बाद से ही रोजा शुरू करते हैं.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इसे हल करने की कोशिश हुई थी
मई का महीना था और कैलेंडर में साल 2016... इस्लामिक देश तुर्की की पहल पर इस्तांबुल में एक अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस आयोजित कराई गई. इस कॉन्फ्रेंस में तुर्की, जॉर्डन, सऊदी अरब, कतर, मलेशिया, यूएई समेत दुनिया भर के 50 इस्लामिक देशों के स्कॉलर जुटे थे. इस पूरे कॉन्फ्रेंस को इंटरनेशनल हिजरी कैलेंडर यूनियन कांग्रेस के नाम से आज भी जाना जाता है. इन सभी 50 देशों के इस्लामिक स्कॉलर्स ने इस कॉन्फ्रेंस में हिजरी कैलेंडर को लेकर चर्चा की थी. इसी कॉन्फ्रेंस में यह भी फैसला लिया गया था कि हिजरी कैलेंडर को लेकर दुनिया भर में अलग-अलग देशों के मुसलमानों के बीच जो मतभेद हैं उसे खत्म किया जाएगा, ताकि पूरी दुनिया के मुसलमान एक कैलेंडर को मानें और एक साथ ईद और रोजे की शुरुआत हो. हालांकि, अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस के बावजूद आज भी ईद और रोजे को लेकर अलग-अलग देशों के मुसलमानों के बीच मतभेद रहता है.
पहले समझिए रमजान का असल मतलब क्या है
इस्लाम को मानने वाले लोगों के लिए रमजान पूरे साल का सबसे पवित्र महीना होता है. इस्लाम के पैगंबर मोहम्मद साहब के मुताबिक, 'जब रमजान का महीना शुरू होता है तो जहन्नुम के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं और जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं.' साफ और सरल शब्दों में कहें तो यह पूरा महीना नेकी करने का महीना है. इस पूरे महीने इस्लाम को मानने वाले मुस्लिम समाज के लोग रोजा रखने के साथ-साथ पूरे ईमान से कुरान की तिलावत करते हैं. तिलावत यानी पढ़ते हैं.
कब से शुरू हुई रोजा रखने की परंपरा
इस्लाम को मानने वाले और उसके जानकारों का जो मत है उसके मुताबिक, इस्लाम में रोजा रखने की परंपरा दूसरी हिजरी में शुरू हुई. जानकार बताते हैं कि मोहम्मद साहब जब मक्के से हिजरत कर... यानी प्रवासन कर मदीना पहुंचे, तो उसके 1 साल बाद से इस्लाम को मानने वाले मुस्लिम समाज के लोगों ने रोजा रखना शुरू किया. इस्लाम की पवित्र किताब कुरान की दूसरी आयत सूरह अल बकरा में साफ तौर पर कहा गया है कि रोजा तुम पर उसी तरह से फर्ज किया जाता है... जैसे तुम से पहले की उम्मत पर फर्ज था.