Ratan Tata Death: रतन टाटा के निधन की खबर सुनकर हर किसी की आंखे नम हैं. मुंबई के ब्रिज कैंडी अस्पताल में 9 अक्टूबर को देर रात उन्होंने अंतिम सांस ली. वो 86 वर्ष के थे और कुछ दिनों से उम्र संबंधि बीमारियों से जूझ रहे थे. उनके निधन की खबर सुनकर पूरा देश शोकाकुल है. रतन टाटा के पार्थिव शरीर को कोलाबा स्थित उनके घर लाया गया हैइसके बाद उनके पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शन के लिए मुंबई के नेशनल सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स हॉल में रखा जाएगा. जहां सुबह 10 बजे से दोपहर साढ़े तीन बजे तक आम लोग उनके अंतिम दर्शन कर सकेंगे


अंतिम दर्शन के बाद रतन टाटा के पार्थिव शरीर को वर्ली श्मशान घाट में अंतिम संस्कार के लिए लाया जाएगा. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने ऐलान किया है कि भारत के 'रत्नको पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी जाएगी. रतन टाटा के घर के बाहर ही उन्हें तिरंगे में लपेटा जाएगा. ऐसे में चलिए जानते हैं कि आखिर किन लोगों की मौत पर उन्हें तिरंगे में लपेटकर सम्मान दिया जाता है.


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किन लोगों पर लपेटा जाता है तिरंगा?


जब कोई सेना का जवान शहीद होता है तो उसे तिरंगे में लपेटकर राजकिय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाता है. ऐसे में जो जवान देश की रक्षा करते हुए शहीद हो जाते हैं, उनके पार्थिव शरीर को तिरंगे में लपेटा जाता है और सीआरपीएफ, बीएसएफ जैसे अर्धसैनिक बलों के जवान जो देश सेवा में शहीद होते हैं, उन्हें भी तिरंगे में लपेटा जाता है. साथ ही पुलिसकर्मी जो देश की सेवा करते हुए शहीद होते हैं, उन्हें भी तिरंगे में लपेटा जाता है. इसके अलावा कुछ विशेष परिस्थितियों में, अन्य सरकारी कर्मचारी जो देश की सेवा करते हुए शहीद होते हैं, उन्हें भी तिरंगे में लपेटा जा सकता है.


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बदला नियम


हालांकि अब नियम बदल चुके हैं. पहले पॉलिटिशियन या सेना के जवानों को ही मौत के बाद तिरंगे में लेपेटे जाने का सम्मान प्राप्त होता था. अब किसी व्यक्ति का ओहदा और उसने देश के लिए क्या कुछ किया है ये देखकर सम्मान दिया जाता है. सरकार राजनीति, साहित्य, कानून, विज्ञान, उद्योग और सिनेमा जैसे क्षेत्रों में भी अहम किरदार अदा करने वाले लोगों को राजकीय सम्मान देती है.


परोपकार की मिसाल थे रतन टाटा


रतन टाटा अपने दानी व्यक्तित्व के लिए जाने जाते थे. उन्होंने समय-समय पर लोगों के जीवन को बचाने के लिए अपनी संपत्ति का बड़ा हिस्सा दान किया है. कोरोना महामारी के समय हमारा देश स्वास्थ्य संकटों से जूझ रहा था. उस समय टाटा समूह ने देश की मदद के लिए 1500 करोड़ रुपये का डोनेशन दिया था. टाटा ट्रस्ट के प्रवक्ता देवाशीष राय के मुताबिक, सामान्य हालात में टाटा समूह की ओर से चलाया जाने वाला ट्रस्ट हर साल करीब 1200 करोड़ परमार्थ के लिए खर्च करता है. वहीं आर्थिक तंगी से जूझने वाले छात्रों के लिए भी टाटा समूह हमेशा आगे रहा है. रतन टाटा अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा दान में दे देते थे.


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