क्रिकेट के गेम में बल्ले और बॉल से हर खिलाड़ी एक दूसरे को जवाब देता है. एक मैच में लाल रंग की दिखने वाली ये गेंद कई रिकॉर्ड्स में बदलाव कर देती है. जैसे ये गेंद क्रिकेट के मैदान में अहम होती है, वैसे ही इसे बनाए जाने की प्रोसेस भी काफी अहम होती है. जब भी आपने लैदर की इस गेंद को हाथ में लिया होगा तो अंदाजा लग गया होगा कि ये कितनी भारी होती है. ये गेंद नॉर्मल टेनिस बॉल से अलग होती है और इस रेड कवर के नीचे कुछ ना कुछ भरा होता है. ऐसे में सवाल है कि आखिर इसके अंदर क्या होता है और किस वजह से ये भारी होती है. तो जानते हैं इस गेंद से जुड़ी मैन्युफैक्चरिंग की खास बातें...


गेंद में क्या भरा होता है?


जिस तरह पृथ्वी बनी होती है, ठीक उसी तरह क्रिकेट की लाल वाली गेंद बनी होती है. दरअसल, इस गेंद के अंदर कई तरह की परत होती हैं, हालांकि पृथ्वी वाली परतों की तरह एनर्जेटिक नहीं होती है. दरअसल, गेंद का सबसे ऊपरी हिस्सा लैदर के ढका होता है यानी इसका सबसे ऊपरी आवरण लैदर से बना होता है, जिसका जिक्र कॉमेंटेटर अक्सर करते रहते हैं. इस पर ग्राउंड से पड़ने वाला असर गेंद की स्विंग पर असर डालता है.


इसके अंदर दो तरह की लेयर होती है. इसके एक हिस्से में कॉर्क का चंक भरा जाता है, जिससे यह काफी टाइट रहता है और फिर इसे डोरी से टाइट बांधकर गोलाकार आकार में बदल दिया जाता है. इसे बनाते वक्त गेंद के वजन का खास ख्याल रखा जाता है और पुरुष क्रिकेट में 155.9-163.0 ग्राम वजन होता है. इसे चार अलग-अलग टुकड़ों के जरिए बनाया जाता है और फिर इन्हें सिला जाता है. इसके बाद कवर होता है. इसपर कलर किया जाता है और अलग अलग रंग दिया जाता है. 


कितने रुपये की होती है गेंद?


इंटरनेशनल मैच में आमतौर पर कूकाबुरा की टर्फ वाइट बॉल का इस्तेमाल किया जाता है. अगर इसकी कीमत की बात करें तो ये 15 हजार की होती है. इसके अलावा इनकी कीमत अलग अलग कंपनी के हिसाब से अलग अलग हो सकती है.


ये भी पढ़ें- जब संसद सत्र चलता है तो सांसदों को सैलरी के साथ मिलते हैं इन चीजों के भी पैसे, देखें लिस्ट