आपने अक्सर सुना होगा कि कोई कहता है, “यार तुम्हें कहीं देखा था!” लेकिन नाम याद नहीं आ रहा. ऐसा क्यों होता है? यह सवाल शायद आपके दिमाग में भी आता होगा और उस समय आप अपनी कमजोर याददाश्त को दोष देकर आगे बढ़ जाते होंगे, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर ऐसा होता क्यों है और इसके पीछे का असल कारण क्या है?
दरअसल नाम याद न आना और चेहरे याद रखना, यह एक सामान्य मनोवैज्ञानिक स्थिति है, जिसका हम सब कभी न कभी अनुभव करते हैं. इसका कारण हमारी मस्तिष्क की कार्यप्रणाली, याददाश्त और जानकारी को प्रोसेस करने के तरीके से जुड़ा हुआ है. तो चलिए इस आर्टिकल में हम जानते हैं कि क्यों चेहरे हमें याद रहते हैं, लेकिन नाम भूल जाते हैं और इसके पीछे वैज्ञानिक और मानसिक कारण क्या हैं.
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चेहरे और नाम का दिमाग पर क्या होता है प्रभाव?
इंसान का मस्तिष्क अपने तरीके से जानकारी को प्रोसेस करता है और चेहरे और नाम को पहचानने की प्रक्रिया अलग होती है. हमें यह समझने की जरूरत है कि चेहरा और नाम दोनों अलग-अलग प्रकार की जानकारी हैं, जिन्हें हम अलग-अलग तरीकों से इकट्ठा करते हैं.
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कैसे होती है चेहरे की पहचान?
चेहरे की पहचान एक बहुत ही कठिन प्रक्रिया है. जब हम किसी व्यक्ति से मिलते हैं, तो हम उसकी शारीरिक खासियतों, जैसे आंखों, नाक, होंठ, चेहरा और चेहरे के अन्य अंगों को एक साथ जोड़कर उसे पहचानते हैं. हमारा मस्तिष्क चेहरे की पहचान के लिए एक खास प्रणाली का उपयोग करता है, जिसे “फेस इनहिबिशन सिस्टम” (Face Hindrance Framework) कहा जाता है. यह प्रणाली चेहरे के हर छोटे से डिटेल को दिमाग में जोड़ती है, जैसे कि आंखों की शक्ल, त्वचा का रंग, चेहरे की बनावट. इस प्रक्रिया में फेसिबुकल कोर्टेक्स (Fusiform Cortex) नामक मस्तिष्क का हिस्सा खास भूमिका निभाता है, जो चेहरे की जानकारी को पहचानने और याद रखने में मदद करता है.
यह प्रक्रिया इतनी तेज और प्रभावी होती है कि हम बिना किसी कोशिश के दूसरों के चेहरों को पहचान लेते हैं. यही वजह है कि अगर आपने किसी को एक बार देखा है, तो उसका चेहरा याद रह जाता है, भले ही आपतो उसका नाम याद न हो.
नाम की पहचान (Name Acknowledgment)
वहीं, नाम को पहचानने और याद रखने की प्रक्रिया थोड़ी अलग है. नाम एक अब्सट्रैक्ट इनपुट (Theoretical Info) है, जिसका कोई शारीरिक रूप नहीं होता. नाम को याद रखने के लिए हमें खासतौर पर से उस नाम के साथ जुड़े व्यक्तित्व या भावनाओं को जोड़ना पड़ता है. मस्तिष्क को नामों को याद रखने में ज्यादा समय लगता है, क्योंकि वे किसी भी सीन या मैसेज के बिना होते हैं.
इंसान का मस्तिष्क ने इतिहास में नामों के लिए बहुत कम जगह बनाई है. चेहरे के विपरीत, नामों को एक खास मानसिक जगह पर रखने के लिए हमें कड़ी मेहनत करनी पड़ती है. नामों को याद रखने के लिए अक्सर मनोवैज्ञानिक संघ (Mental Affiliations) की जरुरत होती है, जैसे किसी व्यक्ति के नाम के साथ उसका काम, चरित्र या किसी खास घटना को जोड़ना होता है, तभी हमें नाम याद रह पाते हैं.
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