गंगा नदी के पानी को अमृत बना देती है ये चीज, खोज के बाद वैज्ञानिक भी थे हैरान
केंद्रीय प्रदूषण नियतंत्रण बोर्ड ने मार्च महीने में ऋषिकेश से लेकर हावड़ा तक के बीच पड़ने वाले 94 जगहों से गंगा के पानी का सैंपल लिया था. इन सैंपल्स की जांच की गई तो हैरान कर देने वाली बात पता चली.
गंगा नदी को भारत में मां का दर्जा दिया जाता है. इंसान के जन्म से लेकर मृत्यु तक के सभी संस्कारों में गंगा के जल का प्रयोग होता है. धर्म ग्रंथों में इस जल को अमृत के समान बताया गया है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर गंगा जल को अमृत बनाता कौन है. चलिए आज इस आर्टिकल में आपको इसके बारे में विस्तार से बताते हैं.
1890 में जब वैज्ञानिकों की नजर गई
गंगा जल को भारतीय हमेशा से अमृत की तरह मानते आए थे. लेकिन दुनिया के दूसरे देशों के लोग फिलहाल इस बात से अनजान थे. हालांकि, जब 1890 में एक ब्रिटिश वैज्ञानिक अर्नेस्ट हैकिंग ने इस पर रिसर्च किया तो वो हैरान रह गए.
दरअसल, जिस वक्त अर्नेस्ट गंगा पर रिसर्च कर रहे थे, उस वक्त देश में हैजा फैला था और लोग हैजा से मरने वाले लोगों की लाशों को गंगा में बहा दे रहे थे. अर्नेस्ट को डर था कि इन लाशों की वजह से कहीं वो लोग भी ना बीमार हो जाएं जो गंगा के पानी का इस्तेमाल करते हैं. यूरोप में ऐसा हो चुका था. वहां प्रदूषित पानी पीने की वजह से लोगों की जान जा चुकी थी. लेकिन, भारत में जब उन्होंने देखा कि दूसरे लोगों को कुछ नहीं हो रहा तो वो हैरान रह गए. उन्होंने गंगा नदी पर 20 साल रिसर्च किया.
हैकिंग अर्नेस्ट के निधन के बाद उनके रिसर्च को एक फ्रेंच वैज्ञानिक ने आगे बढ़ाया. इस वैज्ञानिक ने जब आधुनिक तकनीक की मदद से रिसर्च की तो पाया कि गंगा नदी के पानी में एक वायरस पाया जाता है, जो हैजा फैलाने वाले बैक्टीरिया में घुसकर उसे नष्ट कर देता है. इसके अलावा गंगा का ये वायरस कई और तरह के बैक्टीरिया में घुसकर भी उसे नष्ट कर दे रहा था. वैज्ञानिक इस वायरस को आज निंजा वायरस के नाम से जानते हैं. गंगा के पानी को यही वायरस सड़ने से भी रोकते हैं.
अब प्रदूषित हो रही गंगा
एक समय में जिस गंगा के पानी को अमृत के समान माना जाता था, आज लोग उसमें नहाने से भी कतराते हैं. इसकी मुख्य वजह प्रदूषण है. बीते साल केंद्रीय प्रदूषण नियतंत्रण बोर्ड ने मार्च महीने में ऋषिकेश से लेकर हावड़ा तक के बीच पड़ने वाले 94 जगहों से गंगा के पानी का सैंपल लिया था. जब इन सैंपल्स को लैब में ले जाया गया तो पता चला कि कई जगह गंगा का पानी इतना प्रदूषित है कि आप सोच भी नहीं सकते.
अकेले कानपुर वाले सैंपल में प्रति सौ मिलीग्राम पानी में जीवाणुओं की संख्या 33 हजार थी. जबकि, मानक के अनुसार, इन्हें अधिकतम 5000 हजार होना चाहिए था. ऐसे में डॉ. और वैज्ञानिकों की सलाह है कि गंगा के पानी को पीना खतरनाक हो सकता है.
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