Retreating Monsoon: वापसी मानसून का मौसम दक्षिण-पश्चिम मानसून की वापसी की शुरुआत के साथ शुरू होता है, जो सितंबर के मध्य से नवंबर और जनवरी की शुरुआत तक रहता है. यह 3 महीने लंबी प्रक्रिया है, जहां यह अक्टूबर में प्रायद्वीप से शुरू होती है और दिसंबर तक चरम पर पहुंच जाती है. खास कर यह दक्षिण-पूर्वी सिरे से शुरू होती है. दक्षिण-पश्चिम मानसून दिसंबर के मध्य में कोरोमंडल तट से वापस चला जाता है. पंजाब में दक्षिण-पश्चिम मानसून सितंबर के दूसरे सप्ताह में वहां से वापस चला जाता है. लौटते मानसून की वापसी धीरे-धीरे होती है और आगे बढ़ने की तुलना में इसमें अधिक समय लगता है.
लौटते मानसून के दौरान जलवायु परिवर्तन
लौटते हुए मानसून की शुरुआत के साथ आसमान साफ हो जाता है और बादल गायब हो जाते हैं. बादलों के गायब होने से अलग-अलग स्थानों की जलवायु धीरे-धीरे गर्म हो जाती है. बंगाल की खाड़ी से भयंकर उष्णकटिबंधीय चक्रवात उठते हैं. अक्टूबर-नवंबर का महीना भयंकर चक्रवातों से ग्रस्त रहता है. इस अवधि के दौरान तापमान तेजी से नीचे आता है. आसमान भी साफ़ हो जाता है. जैसे ही मानसून दक्षिण की ओर लौटना शुरू करता है, दबाव कम हो जाती है. स्थानीय दबाव की स्थिति आमतौर पर उस दौरान हवा के प्रवाह को प्रभावित करती है.
भारी वर्षा वाले क्षेत्र
- पश्चिमी घाट का पश्चिमी भाग (200-400 सेमी)
- उत्तर-पूर्वी भारत (असम, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम)
- कम वर्षा वाले क्षेत्र
भारत में लौटते मानसून के मौसम के दौरान दक्षिण-पूर्वी तट पर बहुत अधिक वर्षा होती है. इस दौरान उष्णकटिबंधीय चक्रवात भी आते हैं. तमिलनाडु राज्य में इस दौरान पूरे साल में होने वाली वर्षा का लगभग आधा हिस्सा बरसता है. इसे शीतकालीन मानसून या उत्तर-पूर्वी मानसून कहा जाता है. लौटता हुआ मानसून पूरे भारत में विभिन्न स्थानों पर असमान मात्रा में वर्षा लाता है. कुछ स्थानों पर भारी वर्षा होती है और कुछ स्थानों पर अल्प वर्षा होती है. अगर सबसे अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों की बात करें तो उसमें कर्नाटक, गुजरात और महाराष्ट्र राज्य आता है.
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