भारत का चंद्रयान अब जल्द ही चांद पर पहुंचने वाला है. चंद्रयान-3 के प्रोपल्शन मॉड्यूल से लैंडर विक्रम अलग हो गया है. अब चांद पर जाने का रास्ता विक्रम को अकेला ही तय करना होगा और विक्रम पर जिम्मेदारी होगी कि सॉफ्ट लैंडिंग हो और रोवर को चांद की धरती पर उतारा जाए. माना जा रहा है कि लंबे इंतजार के बाद 23 अगस्त को विक्रम चांद पर लैंड कर जाएगा. लेकिन, इसी बीच रूस का मिशन लून-25 भी चांद पर लैंड करने जा रहा है, जो चंद्रयान-3 से पहले चांद पर उतरेगा.
दरअसल, रूस का मिशन चंद्रयान के बाद पृथ्वी से रवाना हुआ था और वो चंद्रयान से पहले चांद पर लैंडिंग कर जाएगा. अब सवाल है कि आखिर बाद में रवाना होने के बाद भी रूस का मिशन किस वजह से चंद्रयान से पहले पहुंच रहा है.
किसकी कब है टाइमिंग?
रूस के मिशन का नाम है लूना-25. लूना-25, ये 10 अगस्त को अंतरिक्ष में भेजा गया था और चंद्रयान को 14 जुलाई को भेज दिया गया है. यानी ये करीब 1 महीने बाद भेजा गया था और वो चंद्रयान से पहले पहुंच जाएगा. अनुमान है कि चंद्रयान 23 अगस्त को पहुंच जाएगा और रूस का मिशन 22 अगस्त को लैंड कर जाएगा. ऐसे में ये करीब 1 महीने के कम अंतर में पहुंच जाएगा. चंद्रयान को चांद पर पहुंचने में 42 दिन लगे हैं, जबकि रूस के मिशन को सिर्फ 12 दिन लगे हैं.
क्यों लग रहा है कम वक्त?
चंद्रयान का वजन 3900 किलो है, जबकि रूस के लूना-25 का वजन 1750 किलो है. चंद्रयान के रॉकेट का नाम LVM3 M4 है जबकि लूना-12 का रॉकेट Soyz-2.1b/Fregat है. साथ ही चंद्रयान का पेलोड वजन 1778 किलो (रोवर का 26 किलो वजन शामिल है) है जबकि लूना-25 का पेलोड वजन सिर्फ 31 किलो है. ऐसे में कहा जा सकता है कि वजन कम होने की वजह से और रॉकेट की अलग-अलग खूबियों की वजह से टाइम एक महीने से भी कम हो गया है. रूस के मिशन की एक खास बात ये भी है कि ये एक साल तक वहां रिसर्च करेगा, भारत का चंद्रयान सिर्फ 14 दिन तक ही काम करेगा.
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