सैनिटरी पैड्स का नाम आते ही सबसे पहले जहन में महिलाएं और मासिक धर्म के दौरान उनको होने वाली परेशानियां आती हैं. लेकिन अगर हम कहें कि सैनिटरी पैड्स महिलाओं के लिए बने ही नहीं थे तो आप क्या कहेंगे. हो गए ना आप हैरान! लेकिन ये सौ फीसदी सच है. इसके पीछे एक पूरी कहानी है, आज इस आर्टिकल में हम आपको इसी कहानी से रूबरू कराएंगे. इसके साथ ही ये भी बताएंगे कि आखिर लड़के इन सैनिटरी पैड्स को लगाते कहां थे.


लड़कों के लिए क्यों बनाया गया था?


सैनिटरी पैड्स को प्रथम विश्व युद्ध के दौरान बनाया गया था. उस वक्त इसका इस्तेमाल लड़के करते थे. माय पीरियड ब्लॉग की रिपोर्ट के अनुसार, प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जब सैनिकों को गोलियां लगती थीं, तो उनका खून रोकने के लिए इस सैनिटरी पैड्स का इस्तेमाल होता था. वैज्ञानिकों ने इसका निर्माण भी इसी कार्य के लिए किया था. इसे पहली बार बेंजमिन फ्रेंकलिन ने बनाया था. लेकिन अब सवाल उठता है कि जब ये लड़कों या फिर सैनिकों के लिए बनाया गया था तो लड़कियों तक ये कैसे पहुंचा औऱ उन्होंने इसका इस्तेमाल पीरियड में कैसे करना शुरू किया.


लड़कियों तक कैसे पहुंचा सैनिटरी पैड्स


दरअसल, प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जब सैनिकों को गोलियां लगतीं तो उनके खून को रोकने के लिए इस पैड का इस्तेमाल किया जाता. इसी दौरान फ्रांस में सैनिकों का इलाज करने वाली कुछ नर्सों को समझ आया कि जब ये बदन से निकलने वाला खून सोख सकता है तो फिर पीरियड के दौरान महिलाओं के शरीर से निकलने वाला खून भी सोख लेगा. फिर वहीं से सैनिटरी पैड्स का इस्तेमाल महिलाओं के लिए शुरू हुआ और आज दुनियाभर की महिलाएं मासिक धर्म के दौरान सैनिटरी पैड्स का इस्तेमाल करती हैं.


पूरी दुनिया में ये कैसे फैला?


इस घटना के बाद जब इसका चलन धीरे धीरे बढ़ने लगा तो साल 1888 में कॉटेक्स नाम की एक कंपनी ने सैनिटरी टावल्स फॉर लेडीज नाम से एक प्रोडक्ट निकाला जिसका इस्तेमाल महिलाएं पीरियड के दौरान करती थीं. हालांकि, इससे पहले जॉनसन एंड जॉनसन ने भी डिस्पोजल टावल्स बनाना शुरू कर दिया था. हालांकि, ये ज्यादा लोकप्रिय नहीं हुआ था.


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