जब किसी भी बड़े अधिकारियों की बात होती है तो अक्सर लोग उनके पद को लेकर कंफ्यूज हो जाते हैं. जैसे बहुत से लोग सेना के अधिकारियों की रैंक में कंफ्यूज रहते हैं, वैसे ही किसी भी शहर के प्रशासनिक अधिकारियों को लेकर भी लोगों के मन में कई तरह के सवाल होते है. इन अधिकारियों में लोग डीएम, एसडीएम और कलेक्टर को लेकर लोग ज्यादा असंमजस में रहते हैं. लोगों को एडीएम और कलेक्टर के कामों के बारे में ज्यादा पता नहीं रहता है और कार्यप्रणाली नहीं समझ पाए. 


ऐसे में आज हम आपको बता रहे हैं कि आखिर जिला मसिस्ट्रेट, एसडीएम या कलेक्टर में क्या अंतर होता है, उनका क्या काम होता है और इनमें सबसे वरिष्ठ अधिकारी कौन होता है. तो आज आप अपना कंफ्यूजन दूर कर सकते हैं... 


कौन होता है जिला मजिस्ट्रेट?


जिला मजिस्ट्रेट को ही डीएम कहा जाता है. जिला मसिस्ट्रेट जिले का सबसे बड़ा अधिकारी होता है. डीएम को उनकी कार्यशक्ति दण्‍ड प्रक्रिया संहिता (CrPC), 1973 से मिलती हैं, इस वजह से उनके अधिकार कलेक्टर से थोड़े अलग होते हैं.  जिला मजिस्ट्रेट भारतीय प्रशासन सेवा (आईएएस) का एक अधिकारी है, जिसे अलग-अलग जिलों में तैनात किया जाता है. ये कलेक्टर की तरह ही होता है, लेकिन राज्यों के हिसाब से उनकी अलग अलग जिम्मेदारी होती है. 


क्या होता है एसडीएम?


अगर एसडीएम की बात करें तो ये सब डिविजनल मजिस्ट्रेट होता है, जो एक तहसील या उपखंड का सर्वौच्च अधिकारी होता है. ये भी डीएम की तरह छोटे क्षेत्र पर काम करता है और शक्तियां डीएम की तरह होती है. इनका चयन भी सिविल सेवा परीक्षा के जरिए ही होता है और शुरुआत में कई अधिकारियों को एसडीएम नियुक्त किया जाता है. एसडीएम अधिकारियों को भी घर, गाड़ी जैसी सुविधाएं मिलती है. 


क्या होता है कलेक्टर?


अगर कलेक्टर की बात करें तो राजस्व प्रशासन का सर्वोच्च रैंक वाला कर्मचारी कलेक्टर होता है. एक कलेक्टर को भूमि राजस्‍व संहिता (Land Revenue Code), 1959 से मिलती है. ऐसे में ये डीएम से थोड़ा अलग होता है. वैसे तो जिले का मालिक डीएम ही माना जाता है, लेकिन संभागीय आयुक्त और वित्तीय आयुक्त सरकार में राजस्व के मामले में जिला कलेक्टर को नियुक्त किया जाता है.   


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