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Shraddha Murder Case: एक बार फिर चर्चा में लिव इन रिलेशनशिप... जानते हैं भारत में इसे लेकर क्या नियम हैं?

Sharddha Murder Case: हमारा समाज लिव इन जैसे रिश्ते को अनैतिक मानता है, लेकिन कोर्ट का इसको लेकर नजरिया कुछ और ही है. आइए जानते हैं कानूनी तौर कर यह रिश्ता सही है या गलत.

Live In Relationship: राजधानी दिल्ली में हुए श्रद्धा वालकर हत्याकांड (Shraddha Walker Murder Case) मामले के बाद से एक बार फिर लिव-इन रिलेशनशिप चर्चा में है. कोई इसके पक्ष में है तो कोई इसको गलत बता रहा है. ऐसे में, आइए जानते हैं कि भारत का संविधान लिव इन रिलेशनशिप को लेकर क्या कहता है. संविधान के हिसाब से लिव इन रिलेशनशिप सही है या गलत और इसको लेकर क्या कानून हैं. 

क्या है लिव-इन रिलेशनशिप?
जब कोई प्रेमी जोड़ा शादी किए बिना एक ही घर में पति पत्नी की तरह रहता है तो इस रिश्ते को लिव-इन रिलेशनशिप कहते हैं. लिव-इन रिलेशनशिप की अलग से कोई कानूनी परिभाषा कहीं नहीं लिखी है. आसान भाषा में इसे दो व्यस्कों का अपनी मर्जी से बिना शादी किए एक ही छत के नीचे साथ रहना कह सकते हैं. कई कपल इसलिए भी लिव-इन रिलेशनशिप में रहते हैं, ताकि यह तय कर सकें कि वो दोनों शादी करने जितना कंपैटिबल हैं या नहीं. वहीं, कुछ कपल इसलिए रहते हैं क्योंकि उन्हें पारंपरिक विवाह व्यवस्था में कोई दिलचस्पी नहीं होती है.

लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के अनुसार, चार दशक पहले 1978 में बद्री प्रसाद बनाम डायरेक्टर ऑफ कंसोलिडेशन केस में सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार लिव-इन रिलेशनशिप को वैध माना था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई कपल लंबे समय से एक साथ रह रहा है तो उस रिश्ते को शादी ही माना जाएगा. इस तरह कोर्ट ने 50 साल के लिव-इन रिलेशनशिप को मान्यता दी थी.

मौलिक अधिकारों से लिव-इन रिलेशनशिप का कनेक्शन
न्यायपालिका से जुड़ी खबरों को आसान भाषा में बताने वाले मीडिया संस्थान लाइव लॉ के अनुसार, लिव-इन रिलेशनशिप की जड़ कानूनी तौर पर संविधान के अनुच्छेद 21 में ही है. अपनी मर्जी से शादी करने या किसी के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने की को अनुच्छेद 21 से अलग नहीं माना जा सकता. साल 2001 में पायल शर्मा बनाम नारी निकेतन केस में भी सुप्रीम कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप में रहने को वैध माना था. कोर्ट ने यह भी कहा कि हालांकि, हमारा समाज इस रिश्ते को अनैतिक मानता है, लेकिन कानून के हिसाब से लिव इन रिलेशनशिप न तो गैर-कानूनी है और न ही अपराध है.

घरेलू हिंसा का कानून
इंदिरा शर्मा बनाम वी.के. शर्मा केस में सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005 की धारा 2F के डोमेस्टिक रिलेशनशिप में लिव-इन रिलेशनशिप भी आता है. जिस तरह इस कानून से शादीशुदा कपल खुद को घरेलू हिंसा से बचा सकता है, उसी तरह लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे लोगों पर भी यह एक्ट लागू होता है.

भरण पोषण का अधिकार
जस्टिस मलिमथ की कमेटी के सुझाव पर पत्नी की परिभाषा को लेकर CRPC की धारा 125 में संशोधन किया गया था. समिति की रिपोर्ट की सिफारिशों को मानकर यह सुनिश्चित किया गया था कि उन महिलाओं को भी पत्नी (Wife) का दर्जा मिलना चाहिए जो लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाएं या जिन्हें उनके पार्टनर ने छोड़ दिया है.

उत्तराधिकार का अधिकार
जिस तरह पति की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति पर उसकी पत्नी का अधिकार होता है. उसी तरह किसी महिला के लिव-इन पार्टनर की मृत्यु के बाद उसके पार्टनर को विरासत में मिली संपत्ति पर उस महिला का ही अधिकार होता है.

लिव-इन रिलेशनशिप में पैदा हुए बच्चों का क्या?
Tulsa & Ors vs Durghatiya केस में सुप्रीम कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप में पैदा हुए एक बच्चे को संपत्ति का अधिकार ( Right To Property) दिया था. इस केस में अपना फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा था कि लिव इन रिलेशनशिप से हुए बच्चों को नाजायज नहीं माना जाएगा.

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