प्रोफेसर रहते हुए क्या कोई मेयर रह सकता है? जानिए कानून क्या कहता है
Shelly Oberoi Mayor: दिल्ली नगर निगम की मेयर की कुर्सी पर फैसला हो गया है और आम आदमी पार्टी की प्रत्याशी शैली ओबेरॉय को इस पद के लिए चुना गया है.
आम आदमी पार्टी की प्रत्याशी शैली ओबेरॉय को दिल्ली नगर निगम की मेयर चुन लिया गया है. दरअसल, चुनाव होने के लंबे समय बाद तक मेयर पद के लिए खींचतान जारी थी, लेकिन कोर्ट की दखल के बाद चुनाव करवाए गए. अब इस चुनाव में शैली ओबेरॉय ने जीत हासिल की है. शैली ओबेरॉय पटेल नगर के वार्ड नंबर 86 से पार्षद हैं. बताया जा रहा है कि शैली ओबेरॉय दिल्ली यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर रही हैं और इंडियन कॉमर्स एसोसिएशन की लाइफ टाइम सदस्य हैं. शैली ओबेरॉय के असिस्टेंट प्रोफेसर होने के बाद ये सवाल उठाए जा रहे हैं कि आखिर प्रोफेसर रहते हुए कैसे कोई मेयर बन सकता है.
कौन हैं शैली ओबेरॉय?
प्रोफेसर होने के साथ ही उन्होंने स्कूल ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज (एसओएमएस), इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) से दर्शनशास्त्र में डॉक्टरेट की पढ़ाई की है. उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में सम्मानित भी किया गया है, जिसमें प्रोफेसर मनुभाई शाह पुरस्कार आदि शामिल है. इससे पहले उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के जानकी देवी मेमोरियल कॉलेज से बीकॉम की पढ़ाई की है. बता दें कि शैली ओबेरॉय 2013 में आम आदमी पार्टी में शामिल हुईं और 2020 तक इसकी महिला विंग की उपाध्यक्ष रहीं.
क्या कोई प्रोफेसर बन सकता है मेयर?
अब सवाल है कि क्या कोई प्रोफेसर, मेयर बन सकता है. इस सवाल का जवाब हमें मिलता है जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में डीन रहीं और प्रोफेसर इरा भास्कर के एक आर्टिकल में. कुछ साल पहले जेएनयू के टीचर्स पर की गई कार्रवाई के बाद उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया में एक लेख लिखा था, जिसमें बताया था कि प्रोफेसर्स को सरकारी कर्मचारी के रूप में गिना जाना चाहिए या नहीं. आपको बता दें कि सीसीएस रुल्स 1964 के अनुसार, कोई भी सरकारी कर्मचारी चुनाव, राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा नहीं ले सकता है. इस वजह से सरकारी कर्मचारी चुनाव नहीं लड़ सकते हैं.
इस पर इरा भास्कर ने बताया था कि विश्वविद्यालय और यहां तक कि सरकारी विश्वविद्यालय को भी स्वायत्त निकायों के रूप में बनाया गया है और उनके शिक्षक सरकारी कर्मचारी नहीं हैं. हालांकि, इस विभिन्नता को लेकर कई प्रयास भी किए गए हैं. ऐसे में प्रोफेसर को सरकारी कर्मचारी नहीं माना जाता है और वो चुनावी गतिविधियों में हिस्सा ले सकते हैं. इसके साथ ही अगर दिल्ली मेयर के संदर्भ में देखा जाए तो शैली ओबेरॉय को चुनाव के वक्त भी कुछ दिक्कत नहीं हुई थी.
डिस्कलेमर: इस आर्टिकल को लिखने में कई तथ्यों और रिपोर्ट्स को ध्यान में रखा गया है, लेकिन फिर भी खबर में संशोधन की गुंजाइश स्वीकार्य है.
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