आफताब बोला- हीट ऑफ मूमेंट में कर दिया था... समझिए अगर गुस्से में कुछ हो जाए तो क्या अपराधी बच सकता है?
श्रद्धा मर्डर केस में जब आरोपी आफताब की कोर्ट में पेशी हुई तो उसने कह दिया कि उससे यह क्राइम हीट ऑफ मूमेंट यानी गुस्से में हो गया था. जो जानते हैं हीट ऑफ मूमेंट को लेकर कानून क्या कहता है...
श्रद्धा मर्डर केस में हर रोज नए खुलासे हो रहे हैं. आफताब की दरिंदगी के सबूत एक-एक करके सामने आ रहे हैं. पुलिस की जांच में आफताब ने काफी कुछ कबूल कर लिया है, लेकिन जब उसे कोर्ट में पेश किया तो उसने कहा कि उसने यह हीट ऑफ मूमेंट में कर दिया था. यानी उसने इस हत्या को अंजाम गुस्से में दे दिया था या उस वक्त उसे ज्यादा कुछ समझ नहीं आ रहा था. ऐसे में सवाल है कि अगर कोई अपराधी गुस्से में अपराध करता है तो उसे सजा में कोई छूट मिलती है या उससे केस पर कुछ असर पड़ता है.
ऐसे में जानते हैं कि आखिर हीट ऑफ मूमेंट में किए गए अपराध का केस पर क्या असर पड़ता है. तो जानते हैं इससे केस के बारे में हर एक बात...
क्या है हीट ऑफ मूमेंट?
इसे लेकर कानून के जानकार और दिल्ली हाईकोर्ट के वकील प्रेम जोशी बताते हैं, 'अगर आप कहते हैं कि आपने कुछ हीट ऑफ मूमेंट में किया है तो इसका मतलब है कि आप कहते हैं कि आपने बिना कुछ सोचे समझे किसी घटना को अंजाम दिया. साथ ही बताते हैं कि आप उस वक्त काफी गुस्से में था या फिर किसी चीज को लेकर काफी उत्साहित थे. इस हीट ऑफ पेशन भी कहा जाता है.
अगर कोई हत्या का मामला है और इसमें हीट ऑफ मूमेंट का हवाला दिया जाता है तो इसमें आरोपी यह स्वीकार करता है कि उसने किसी शख्स को मार दिया है. इस केस में यह माना जाता है कि वो यह तर्क देने की कोशिश कर रहा है कि उसका अपनी भावनाओं में कोई कंट्रोल नहीं था. ऐसे में अगर आपको जल्दी गुस्सा आता है तो आपने सिर्फ गुस्से में कोई अपराध कर दिया है तो इसका कोई सही स्पष्टीकरण नहीं माना जाता है. हालांकि, इसके लिए यह तथ्य अहम है कि आपने बिना सोचे समझे अपराध क्यों किया और किन कारणों की वजह से आप हत्या को मजबूर हुए.
अगर आपके केस में यह साबित होता है कि आपने सिर्फ कुछ देर के गुस्से में अपराध किया है और अगर गुस्सा शांत हो जाता तो वो नहीं करते तो इस तरह के तर्क का सजा और केस पर कोई असर नहीं होगा. ऐसे में हत्या के कारणों पर चर्चा होना काफी लाजमी होता है. वैसे कोर्ट ने कई बार बिना किसी साजिश और बिना सोचे समझे किए गए अपराधों में दोषी की सजा को कम किया है, लेकिन इसमें कई फैक्टर्स को ध्यान रखा जाता है.
उन्होंने बताया, 'ऐसे में अपराधी का मकसद, पुरानी साजिश, घटना किस तरह हुई, चोट मारने का इरादा, तुरंत मौत या बाद में मौत, चोट की गंभीरता, हथियार का इस्तेमाल, क्रिमिनल बैकग्राउंड, क्रिमिनल पर पहले लगे केस, किसके साथ की गई घटना आदि को ध्यान में रखते हुए फैसला लिया जाता है.'
आफताब केस में क्या होगा असर?
अगर आफताब केस की बात करें तो माना जा रहा है कि इससे कुछ फायदा नहीं मिलने वाला है. दरअसल, इसमें आफताब कई चीजें उसके खिलाफ है. जैसे हत्या के बाद किए गए कृत्य भी काफी भयावह है. इसके साथ ही कई बार आफताब ने अपने बयान भी बदले हैं, जिसकी वजह से भी इस केस पर असर पड़ सकता है.
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