नार्को टेस्ट के बारे में आपने कई बार सुना होगा. ये टेस्ट एक बार फिर सुर्खियों में है. श्रद्धा मर्डर मामले में कोर्ट ने आरोपी आफताब पूनावाला की नार्को टेस्ट का आदेश दिया है. इस केस में हर दिन नए-नए खुलासे हो रहे हैं. ऐसे में असली सच बाहर लाने के लिए पुलिस अब नार्को टेस्ट का सहारा लेगी. इसलिए हम आपको कुछ उदाहरण के जरिए ये बताने की कोशिश करेंगे कि ये कितना सफल है? पुराने वो केस जिनमें नार्को टेस्ट किया गया, वो कितना सही रहे और इस टेस्ट की प्रक्रिया क्या है.


क्या है नार्को टेस्ट?
नार्को टेस्ट का इस्तेमाल गंभीर मामलों के लिए किया जाता है. इस टेस्ट को ट्रुथ सीरम भी कहते हैं. इस टेस्ट को करने से पहले व्यक्ति को एक दवा दी जाती है. इसमें सोडियम पेंटोथल, स्कोपोलामाइन और सोडियम अमायटल होता है. दवा देने के बाद व्यक्ति एक तरह की सम्मोहक अवस्था में चला जाता है. माना जाता है कि इस दौरान आधी बेहोशी के दौरान व्यक्ति के सच बोलने की संभावना बढ़ जाती है. पहला नार्को टेस्ट 1922 में किया गया था. रॉबर्ट हाउस नाम के डॉक्टर ने दो अपराधियों से सच उगलवाने के लिए किया था.


टेस्ट कराने की विशेष प्रक्रिया
नार्को टेस्ट कोर्ट के आदेश पर किया जाता है. इस टेस्ट को करने के लिए एक्सपर्ट की एक टीम बनाई जाती है. इस टीम में फोरेंसिक एक्सपर्ट, डॉक्टर, मनोवैज्ञानिक होते हैं. पुलिस अधिकारी भी इस प्रक्रिया का हिस्सा होते हैं. किसी भी अपराधी को ड्रग देने के बाद ये चेक किया जाता है कि दवा ठीक से काम कर रही है कि नहीं. इसके लिए पहले आसान सवाल पूछे जाते हैं. जैसे नाम क्या है? कहां रहते हैं? परिवार में कौन-कौन है?



  • केस 1: 'स्कैम 1992' के नाम से मशहूर स्टांप पेपर घोटाले में आरोप अब्दुल करीम तेलगी का नार्को टेस्ट हुआ था. आरोपी तेलगी ने इस घोटाले में जांच के दौरान कहा था कि महाराष्ट्र की राजनीति के दो बड़े नेताओं को उसने घूस दी थी. इसके बाद राजनीति में भूचाल आने पर अब्दुल का नार्को टेस्ट हुआ पर टेस्ट के दौरान उसने ऐसा कुछ नहीं कहा.

  • केस 2: मुंबई हमले के आरोपी अजमल कसाब का नार्को टेस्ट किया गया था. इस टेस्ट के दौरान ही उसने बताया था कि पूरा प्लान पाकिस्तान में तैयार हुआ था.

  • केस 3: इस देश के मशहूर आरुषि हत्याकांड में उसके माता पिता नूपुर और राजेश तलवार की नार्को टेस्ट हुआ था. इस टेस्ट में भी उनके इस हत्याकांड से जुड़े काफी सवाल पूछे गए थे.


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