आज हर देश के पास युद्ध लड़ने के लिए एक से बढ़ कर एक आधुनिक हथियार हैं. लेकिन इतिहास में जब आप झांकेंगे तो पता चलेगा कि पहले युद्ध तलवारों और तोपों से लड़ा जाता था. तोप चलाने के लिए गोले बारूद की जरूरत पड़ती थी. लेकिन भारतीय इतिहास में एक लड़ाई ऐसी भी हुई थी, जिसमें लोहे के गोले की जगह चांदे के गोलों का इस्तेमाल हुआ था. चलिए आज आपको इस युद्ध के बारे में विस्तार से बताते हैं.
कहां का था ये युद्ध?
ये युद्ध साल 1814 में राजस्थान में हुआ था. दरअसल, इसी वर्ष बीकानेर रियासत के राजा सूरत सिंह ने अपनी सेना के साथ चूरू किले पर हमला बोल दिया. चुरू किला राजा ठाकुर शिवजी सिंह के अधीन था. उनके पास भी एक बड़ी सेना थी. लेकिन युद्ध काफी लंबा खिंच गया. इस वजह से किले में मौजूद गोला बारूद खत्म हो गया. अब समस्या ये थी कि आखिर गोला किस चीज का बनाया जाए.
इतिहासकार बताते हैं कि इसके बाद राजा ठाकुर शिवजी सिंह के साथ उनकी जनता खड़ी हो गई और प्रजा ने अपने चांदी के सिक्के और गहने तक दे दिये ताकि इन्हें पिघला कर गोला बनाया जा सके. इसी चांदी को पिघला कर बाद में गोला बनाया गया और दुश्मनों पर दागा गया. बीकानेर की सेना ने जब चुरू के लोगों का ऐसा साहस देखा अंत में अपनी हार स्वीकार कर ली.
कितना खास था ये किला
इस किले को साल 1694 में राजा ठाकुर कुशल सिंह ने बनवाया था. राजस्थान के चुरू जिले में मौजूद इस किले को बनवाने के पीछे राजा कुशल सिंह का मकसद आत्मरक्षा और अपनी प्रजा की सुरक्षा को सुनिश्चित करना था. आमतौर पर इस किले में 200 पैदल सैनिक और 200 घुड़सवार सैनिक मौजूद रहते थे. लेकिन युद्ध के समय इनकी संख्या और बढ़ा दी जाती थी. बीकानेर के साथ जब युद्ध हुआ तब भी स्थिति यही थी. चुरू के किले में सैनिकों की कमी नहीं थी, लेकिन गोला बारूद जरूरत के हिसाब से नहीं थे, इसीलिए वहां की जनता ने अपने चांदी के आभूषणों से युद्ध के लिए गोला बनाने को कहा.
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