दुनियाभर में इस जनजाति की मदद से बनती है सांप काटने की दवा, जानें क्या है प्रोसेस
सांप को दुनिया का सबसे जहरीला जानवर माना जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक ऐसी जनजाति भी है, जो इन खतरनाक सांपों का जहर निकालने का काम करती है, जिससे दवा बन सके. जानिए क्या है इस जनजाति का नाम.
सांप को दुनिया का सबसे जहरीला जानवर माना जाता है. अधिकांश लोग सांप को सामने देखने के बाद घबरा जाते हैं. हालांकि कुछ सांप का जहर खतरनाक नहीं होता है, लेकिन किंग कोबरा, करैत, ब्लैक माम्बा, रसेल वाइपर जैसे सांपों का जहर बहुत खतरनाक होता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक ऐसी जनजाति भी है, जो इन जहरीले सांपों का जहर निकालती है. आज हम बताएंगे कि ये जनजाति कैसे जहर निकालती है और उस जहर का क्या करती है.
इरुला जनजाति
बता दें कि इरुला जनजाति के लोग ना सिर्फ सांप को खिलौनों की तरह उठाते हैं, बल्कि बहुत आसानी से उनका जहर निकालकर इकट्ठा भी कर लेते हैं. जानकारी के लिए बता दें कि इरुला जनजाति दक्षिण भारत में पाई जाती है. इस जनजाति के लोग सदियों से सांपों का जहर इकट्ठा करने का काम कर रहे हैं. इरुला जनजाति के लोग सांप का जहर निकालने के लिए उनकी गर्दन को जोर से दबाते हैं. इसके बाद उनका मुंह खुलने पर उनके दांत एक जार में अटका देते हैं. वहीं गर्दन दबाने से गुस्से में आया सांप जहर उगलना शुरू कर देता है. इसी जहर को इरुला जनजाति के लोग इकट्ठा करना शुरू कर देते हैं.
सांपों के जहर से बनता है एंटी-वेनम इंजेक्शन
बता दें कि वैज्ञानिक इरुला जनजाति से सांपों का जहर लेकर उससे सांप के काटने पर लगाया जाने वाला एंटी-वेनम इंजेक्शन बनाते हैं. इरुला जनजाति दक्षिणी भारत के केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु राज्यों में पाई जाती है. वहीं इस समुदाय की आबादी करीब 3 लाख है. जानकारी के मुताबिक समुदाय के 90 फीसदी से ज्यादा लोगों को सांपों का पता लगाने और पकड़ने में महारत हासिल होती है. ये लोग कई पीढ़ियों से यही काम कर रहे हैं. इतना ही नहीं समुदाय के बच्चे, बूढ़े और जवानों के अलावा महिलाएं भी सांपों को पकड़कर उनका जहर इकट्ठा करने में माहिर होती हैं.
किन सांपों का जहर निकालने की छूट?
भारत में सांपों को पकड़कर उनका जहर निकालने की सीमित मंजूरी है. नियम के मुताबिक जहर निकलने के लिए सिर्फ चार प्रजाति के सांपों को ही पकड़ा जा सकता है. इनमें किंग कोबरा, करैत, रसेल वाइपर और इंडियन सॉ स्क्रेल्ड वाइपर शामिल हैं. बता दें कि इन चारों ही प्रजाति का जहर इतना खतरनाक होता है कि इसकी एक बूंद भी किसी की जान ले सकती है. हालांकि इरुला जनजाति के लोग बहुत आसानी से सांप का जहर निकाल लेते हैं.
अंग्रेजों को सांप बेचते थे इस जनजाति के लोग
बता दें कि इरुला जनजाति के लोग सांप का जहर निकालकर फार्मा कंपनियों को महंगी कीमत पर बेच देते थे. लेकिन अब यह काम सरकार की मंजूरी के साथ होता है, जिससे जहर से एंटी वेनम इंजेक्शन बने. जानकारी के मुताबिक आजादी से पहले यह समुदाय अंग्रेजों को सांप बेचता था. दरअसल अंग्रेजों को सांप की खाल बहुत पसंद आती थी. हालांकि 1972 में वन्य जीव संरक्षण कानून आने के बाद सांप के शिकार पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. लेकिन फिर वैज्ञानिक रोमुलस व्हिटेकर ने 1978 में इरुला जनजाति के लोगों के साथ दोस्ती करके समिति की स्थापना की थी.
सांप का जहर बेचकर करते हैं करोड़ों की कमाई
जानकारी के मुताबिक इसके बाद व्हिटेकर ने ही जनजाति के लोगों को सांप को पकड़ने की जिम्मेदारी दी थी. इसके बाद ये समुदाय सांप के शिकारियों से लोगों के जीवनरक्षक बन गये थे. समिति के लोगों को जहर निकालने के लिए सरकारी लाइसेंस दिया जाता है. इन्हें हर साल 13,000 सांप पकड़ने की छूट मिलती है. इससे उन्हें 25 करोड़ रुपये तक की कमाई हो जाती है. सांप का जहर निकालने के लिए इस जनजाति के लोग सांप को पकड़कर मिट्टी के बर्तन में रखते हैं, क्योंकि ये जिन इलाकों में रहते हैं, वहां बहुत गर्मी होती है. नियम के मुताबिक समिति के लोग एक सांप को 21 दिन तक ही अपने पास रख सकते हैं. इस दौरान वे 4 बार जहर निकाल लेते हैं.
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