Snakes and Ladders Game: बचपन में आपने लुका-छिपी, चोर-पुलिस और न जाने कितने गेम खेले होंगे. इनमें से एक सबसे पॉपुलर गेम लूडो और सांप-सीढी भी था. हालांकि, ये इंडोर गेम (Indoor Game) हैं, लेकिन बच्चों में काफी पॉपुलर है. यहां तक कि आजकल कुछ युवा भी मोबाइल पर ऑनलाइन लूडो खेलते हैं. आज भी इसका दौर बरकरार है. लूडो के बोर्ड में ही दूसरी तरफ सांप-सीढी (Snake And Ladders) गेम होता है. इसे भी आपने खूब खेला होगा. क्या आप जानते हैं इस खेल की शुरुआत एक बेहद अच्छी सोच के साथ भारत में हुई थी? आइए इस बारे में थोड़ा डिटेल में जानते हैं.


बच्चों को सांप-सीढ़ी लगता है आसान 


ज्यादातर बच्चों को ये खेल लूडो से ज्यादा आसान लगता था, क्योंकि इसमें सबकुछ पासा फेंकने और किस्मत पर निर्भर रहता है और ज्यादा दिमाग नहीं लगाना पड़ता है. खासतौर पर बच्चे इस खेल के दीवाने ही होते हैं. इस खेल से जुड़ी एक अनोखी बात यह है कि ज्यादातर लोगों को लगता है कि यह एक विदेशी गेम है, जबकि ऐसा नहीं है. इसकी शुरआत भारत से हुई थी. हालांकि, आज हम इसका जो रूप देखते हैं वो बदला हुआ रूप है.


13वीं शताब्दी में बनाया गया यह खेल


प्राचीन भारत में सांप-सीढी के खेल को मोक्ष पटामु या मोक्षपट नाम से जाना जाता था. यह खेल दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से खेला जा रहा है, वहीं कुछ लोगों का मानना है कि यह खेल 13वीं शताब्दी में स्वामी ज्ञानदेव ने बनाया था. कर्म और काम की शिक्षा देना इस खेल को बनाने के पीछे का मुख्य उद्देश्य था.


पुराने खेल में सीढ़ी की संख्या थी कम 


खेल में सीढ़ियां अच्छे कर्मों को और सांप बुरे कर्म को दर्शाते हैं. अच्छे कर्म हमें 100 (मोक्ष) के नजदीक लेकर जाते हैं, वहीं बुरे कर्म हमें कीड़े-मकौड़े के रूप में दुबारा जन्म लेने का जिम्मेदार बनते हैं. बताया जाता है कि पुराने खेल में सांपों की संख्या सीढ़ियों से ज्यादा थी, जो यह दर्शाता था कि अच्छाई का रास्ता बुरे रास्ते से मुश्किल होता है .


इस गेम को नया रूप तब मिला, जब यह 19वीं शताब्दी में इंग्लैंड पहुंचा. शायद इंग्लैंड के शासक इसे अपने साथ ले गए थे. 1943 में ये जब यह खेल USA पहुंचा तो वहां मिल्टन ब्रेडले ने इसे एक नया रूप दिया.


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