द्वितीय विश्वयुद्ध इतिहास के सबसे काले पन्नों में से एक है. इस युद्ध में हथियारों और युद्धकौशल के साथ-साथ कई ऐसी चीजों का भी इस्तेमाल हुआ, जिनके बारे में शायद ही कभी सुना गया होगा. उनमें से एक है कंडोम.
जी हां, आपने सही पढ़ा. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान सैनिकों ने कंडोम को एक अनोखे तरीके से इस्तेमाल किया. वो इसे यौन सुरक्षा के लिए नहीं बल्कि अपनी राइफल्स की रक्षा के लिए इस्तेमाल करते थे.
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सैनिक क्यों इस्तेमाल करते थे कंडोम?
दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान सैनिकों को अक्सर जंगलों और दलदली इलाकों में लड़ाई लड़नी पड़ती थी. इन इलाकों में बारिश और कीचड़ की भरमार होती थी. ऐसे में सैनिकों की राइफलें जंग लगने और खराब होने का खतरा बना रहता था. राइफलों को जंग लगने से बचाने के लिए सैनिक कंडोम का इस्तेमाल करते थे.
दरअसल कंडोम रबर से बने होते हैं और इनमें पानी रोकने की क्षमता होती है. सैनिक अपनी राइफल की बैरल पर कंडोम चढ़ा देते थे जिससे राइफल पानी और कीचड़ से सुरक्षित रहती थी. इसके अलावा कंडोम राइफल को धूल-मिट्टी और अन्य कणों से भी बचाते थे. इससे राइफल की कार्यक्षमता में कोई बाधा नहीं आती थी. इसके अलावा कंडोम हल्के होते हैं और इसके अलावा ये आसानी से उपलब्ध होते थे. साथ ही सैनिक इन्हें आसानी से अपनी किट में रख सकते थे.
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कंडोम का इस्तेमाल करने से सैनिकों को ये होता था फायदा
कंडोम के इस्तेमाल से राइफलें लंबे समय तक चलती थीं और बार-बार बदलने की जरूरत नहीं पड़ती थी. साथ ही एक अच्छी तरह से रखरखाव वाली राइफल युद्ध में सैनिकों के लिए बहुत उपयोगी होती थी. साथ ही एक अच्छी तरह से रखरखाव वाली राइफल युद्ध में सैनिकों के लिए बहुत उपयोगी होती थी. साथ ही कंडोम का इस्तेमाल करने से सेना को राइफलों की मरम्मत पर होने वाले खर्च को कम करने में मदद मिलती थी. द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद राइफलों को जंग से बचाने के लिए कई तरह के नए उपकरण विकसित किए गए. लेकिन आज भी कई लोग कंडोम को एक अनोखे और सरल तरीके के रूप में देखते हैं जिससे राइफलों को जंग से बचाया जा सकता है.
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