इंसानों की तरह तारे भी छींकते हैं, जानिए इनकी छींक कैसी होती है
वैज्ञानिकों को इसके बारे में तब पता चला जब उन्होंने MC 27 का अध्ययन किया. यह धरती से लगभग 450 प्रकाश वर्ष दूर है. इस पर अध्ययन के लिए वैज्ञानिकों ने 66 हाई क्वालिटी वाले रेडियो दूरबीनों की सहायता ली.
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इंसानों को छींक आना एक स्वाभाविक क्रिया है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इंसानों की तरह तारे भी छींकते हैं. शायद आपने इससे पहले ऐसा कुछ नहीं सुना होगा, लेकिन ये बात सच है. क्यूशू यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने हाल ही में एक शोध किया था. इसी शोध में उन्हें पता चला कि तारे छींकते भी हैं.
तारे कब छींकते हैं?
ऐसा नहीं है कि तारे हमेशा छींकते हैं. दरअसल, इन्हें छींक तब आती है जब वह अपने निर्माण के दौर में होते हैं. इन तारों को आप शिशु तारे या प्रोटोस्टार कह सकते हैं. वैज्ञानिकों ने अपने शोध में पाया कि ये तारे जब छींकते हैं तो इनकी छींक की वजह से धूल, गैस और विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा का एक प्लम डिस्चार्ज होता है. ये बिल्कुल ऐसा लगता है जैसे तारे के चारों ओर एक चिंगारियों का फव्वारा फूट पड़ा हो.
MC 27 के अध्ययन से पता चला
वैज्ञानिकों को इसके बारे में तब पता चला जब उन्होंने MC 27 का अध्ययन किया. यह धरती से लगभग 450 प्रकाश वर्ष दूर है. इस तारे पर अध्ययन करने के लिए वैज्ञानिकों ने 66 हाई क्वालिटी वाले रेडियो दूरबीनों की सहायता ली. वैज्ञानिकों ने कहा कि जब उन्होंने इस तारे का अध्ययन किया तो उन्हें पता चला कि इस तारे के प्रोटोस्टेलर डिस्क में स्पाइक जैसी संरचनाएं थीं.
ये संरचनाएं शायद चुंबकीय प्रवाह से निकलने वाले धूल और गैस के कणों की वजह इसलिए बनी थीं. इस तरह की घटना को विज्ञान की भाषा में इंटरचेंज अस्थिरता कहते हैं. इसी चीज को आम भाषा में वैज्ञानिक तारों का छींकना कहते हैं. वैज्ञानिक मानते हैं कि आने वाले समय में इस तरह के छीकों से उन्हें तारों के निर्माण को लेकर कई बातें पता चल सकती हैं.
तारे बनते कहां हैं
ब्रह्मांड में मौजूद हर तारा यहां तक की सूर्य ने भी जहां जन्म लिया, उस जगह को तारकीय नर्सरी कहते हैं. अंग्रेजी में आप इसे स्टेलर नर्सरी कह सकते हैं. दरअसल, जब घने और कूल पैच इंटरस्टेलर गैस और धूल बड़े पैमाने पर बादलों के भीतर इकट्ठा होते हैं, तो इसे स्टेलर नर्सरी कहा जाता है. यह एक गैस और धूल की बड़ी सांद्रता है. इसी नर्सरी के कोर में बेबी स्टार बनते हैं.
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