पानी के इस जीव ने वैज्ञानिकों को दिखा दिया स्पेस का रास्ता, जानिए कैसे हुआ ये
एक्स-रेज़ ब्रह्मांड के उन तरंगों को कहते हैं जो आकाशिय पिंडो से उत्सर्जित होते हैं. दरअसल, जब दो पिंड आपस में टकराते हैं या फिर किसी तारें में विस्फोट होता है तब उनसे एक्स-रेज़ निकलती है.
अंतरिक्ष आज भी इंसानों के लिए किसी ऐसे बंद पिटारे की तरह है जिसके अंदर की चीजें इंसानों के भीतर रोमांच पैदा करती हैं. स्पेस के रहस्यों को जानने के लिए वैज्ञानिक बड़े-बड़े टेलिस्कोप की मदद लेते हैं. लेकिन सामान्य टेलिस्कोप तारों के विस्फोट या ब्लैक होल से निकलने वाली एक्स-रेज़ को समझने में उतनी मदद नहीं कर सकते.
यही वजह है कि वैज्ञानिक अब एक्स-रेज़ टेलिस्कोप की मदद से ऐसा करने का प्रयास कर रहे हैं. लेकिन आपको बता दें कि इस टेलिस्कोप को बनाने के लिए वैज्ञानिकों को प्रेरणा पानी के एक जीव से मिली जिसे आप लॉब्स्टर के नाम से जानते हैं. चलिए इसके बारे में आपको विस्तार से बताते हैं.
पहले एक्स-रेज़ को समझिए
एक्स-रेज़ ब्रह्मांड के उन तरंगों को कहते हैं जो आकाशिय पिंडो से उत्सर्जित होते हैं. दरअसल, जब दो पिंड आपस में टकराते हैं या फिर किसी तारें में विस्फोट होता है तब उनसे एक रेज़ निकलती है. इस रेज़ का अध्ययन आम टेलिस्कोप से नहीं हो सकता. इसीलिए इसका अध्ययन करने के लिए एक्सरेज़ टेलिस्कोप की जरूरत पड़ती है. दरअसल, इन एक्सरेज़ से वैज्ञानिकों को ब्रह्मांड की उत्पत्ति और उसके विस्तार के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारियां हासिल होती हैं.
लॉब्स्टर से कैसे मिली मदद
दरअसल, लॉब्स्टर समुद्र की गहराइयों में रहता है. यह समुद्र में 2300 फीट नीचे अंधेरे में रहता है, लेकिन इसके बाद भी इसकी आंखें इस तरह से काम करती हैं कि वह वहां भी सब कुछ देख सकता है. इनकी आंखें प्रतिबिंब पर निर्भर करती हैं और हर आंख में 10000 चौकोर आकार की नलिकाएं होती हैं जो एक साथ पैक होती हैं. ये नलिकाएं आखों तक आने वाली रोशनी को रेटिना तक पहुंचने में निर्देशित करती हैं.
सबसे बड़ी बात की इस मछली की आंखें 180 डिग्री तक की चीजें देख सकती हैं. जबकि इंसान की आंखें सिर्फ 120 डिग्री तक ही देख सकती हैं. इन्हीं खूबियों की वजह से वैज्ञानिकों ने फैसला किया कि वह इस जीव की आंखों के आधार पर एक एक्स-रेज़ टेलिस्कोप का निर्माण करेंगे और उससे स्पेस के रहस्यों को सुलझाने की कोशिश करेंगे.
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