अबू धाबी में पहले हिंदू मंदिर का उद्घाटन हो चुका है. बता दें कि इस मंदिर को ऐसा बनाया गया है, जो करीब 1000 हजार सालों तक खड़ा रहेगा. दरअसल जब मंदिर की निर्माण संस्था ने यूएई की अथॉरिटी के सामने प्लान रखा था, उस वक्त सबसे बड़ा सवाल था कि इतना ऊंचा स्ट्रक्चर बिना स्टील और लोहे के कैसे टिका रह सकता है. उस वक्त संस्था ने जवाब दिया था कि भारत के सभी प्राचीन मंदिर ऐसे ही बने हैं और बीते कई सालों से टिके हुए हैं. आज हम आपको बताएंगे कि इस मंदिर कई सालों तक टिकाए रखने के लिए सैकड़ों सेंसर का इस्तेमाल किया गया है.
मंदिर में 350 सेंसर
इस मंदिर का निर्माण अबू धाबी में 27 एकड़ के बड़े एरिया में 888 करोड़ रुपये की लागत से हुआ है. इसके अलावा मंदिर के पिलर 350 सेंसर लगाए जा रहे हैं. बता दें कि ये सेंसर दबाव, तापमान और अंडरग्राउंड हलचल,भूकंप की जानकारी देंगे.
हर पत्थर का यूनिक नंबर
इस मंदिर के हर पत्थर को एक यूनिक नंबर दिया गया है. राजस्थान के लाल रंग के क्ले स्टोन पर भी कलाकृतियां बनाई गई है. इन सभी पिलर्स को अबू धाबी में लाया गया और आपस में जोड़ा गया था. बता दें कि हर पिलर पर इतनी बारीकी से शास्त्रीय घटनाओं का चित्रण किया गया है, यदि एक व्यक्ति को दे दिया जाए तो एक पिलर को पूरा होने में एक साल लग जाएगा.
सभी सुविधाएं
इस मंदिर परिसर में आपको हर तरह की सुविधाएं मिलेगा. इसमें एक विजिटर सेंटर, प्रेयर हॉल, एग्जीबिटर्स, लर्निंग एरिया, बच्चों के लिए खेलने की जगह, थीम गार्डन, फूड कोर्ट, बुक और गिफ्ट शॉप शामिल हैं.
सभी धर्मों का योगदान
अबू धाबी में बने इस मंदिर की खास बात ये है कि इस मंदिर के निर्माण कार्यों में सभी धर्मों से जुड़े लोगों का योगदान है. बीएपीएस के प्रवक्ता ने बताया कि इस मंदिर के लीड आर्किटेक्ट ईसाई हैं, प्रोजेक्ट मैनेजर सिख हैं, डिजाइनर बौद्ध हैं, कंस्ट्रक्शन कंपनी पारसी है. वहीं डायरेक्टर जैन हैं. वहीं इस जमीन के लिए यूएई के शासक शेक मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान ने जमीन तोहफे में दी है.
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