मांस खाने वाले बैक्टीरिया से भारत को कितना खतरा, शरीर में कैसे घुसता है ये
कोविड वायरस के बाद अब जापान में स्ट्रेप्टोकोकल टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम (एसटीएसएस) बैक्टीरिया फैल रहा है. जानिए ये सबसे ज्यादा किन लोगों के ऊपर अटैक करता है और ये कैसे शरीर में घुसता है.
कोविड वायरस के बाद एक बार फिर से नए बैक्टीरिया की चर्चा खूब हो रहा है. दरअसल जापान एक दुर्लभ बीमारी से जूझ रहा है. इस बीमारी को स्ट्रेप्टोकोकल टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम (एसटीएसएस) नाम दिया गया है. जानकारी के मुताबिक इस बीमारी की वजह मांस खाने वाला एक बैक्टीरिया है. आज हम आपको बताएंगे कि एसटीएसएस कितना खतरनाक बीमारी है और भारत में इसका क्या असर है.
क्या है ये बैक्टीरिया?
जापान में जिस बैक्टीरिया की वजह से स्ट्रेप्टोकोकल टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम (एसटीएसएस) फैल रहा है, उसके बारे में लंबे वक्त से जानकारी है. इस बैक्टीरिया को स्ट्रेप्टोकोकस कहते हैं. बता दें कि इसके दो वैरिएंट या टाइप हैं. पहला ग्रुप-ए स्ट्रेप्टोकोकस और दूसरा पहला ग्रुप-बी स्ट्रेप्टोकोकस है. हम लोगों को सर्दी, खांसी, बुखार या गले में खराश की दिक्कत होती है, तो उसमें ग्रुप-ए स्ट्रेप्टोकोकस रिपोर्ट किया जाता है.
कई बार यह खुद ठीक हो जाता है, कभी-कभी एंटीबॉयोटिक लेना पड़ता है. वहीं दूसरी तरफ ग्रुप-बी स्ट्रेप्टोकोकस है, इसे नुकसानदेह नहीं माना जाता है. हालांकि ग्रुप-ए स्ट्रेप्टोकोकस के कुछ स्ट्रेन्स कभी-कभी बहुत खतरनाक हो जाते हैं. इस केस में इनको इनवेसिस ग्रुप-ए स्ट्रेप्टोकोकस कहते हैं. यह जिस तरीके का कंडीशन पैदा करता है ,उसे स्ट्रेप्टोकोकल टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम कहा जाता है. अभी ये यही बीमारी सिर्फ जापान में फैल रही है.
मांस खाने वाला बैक्टीरिया?
क्या ग्रुप-ए स्ट्रेप्टोकोकस बैक्टीरिया वाकई इंसान का मांस खाता है? जानकारी के मुताबिक इस बैक्टीरिया को मांस खाने वाला कहा जाता है. हालांकि यह सीधे मांस नहीं खाता है, बल्कि इंसान के टीश्यू को मारता है. इसीलिये इसे Flesh-Eating कहते हैं. ग्रुप-ए स्ट्रेप्टोकोकस (GAS) जब टीश्यू को मारता है, तो उस कंडीशन को नेक्रोटाइजिंग फसाइटिस कहा जाता है.
कैसे फैलता है ये बैक्टीरिया?
ग्रुप-ए स्ट्रेप्टोकोकस बैक्टीरिया ऐसे लोगों में तेजी से फैलता है, जिन्हें कोई घाव या खुला जख्म होता है. इंफेक्शन के बाद यह बैक्टीरिया घाव में एक तरह का टॉक्सिन रिलीज करता है. जब टॉक्सिन रिलीज होता है तो वो मसल्स, ब्लड वेसल्स और नर्व्स को नष्ट करना शुरू कर देता है. यह टॉक्सिन इतना खतरनाक होता है कि घाव वाला या इंफेक्शन वाला एरिया एक तरीके से सड़ने लगता है.
वहीं ग्रुप-ए स्ट्रेप्टोकोकस के कारण जो टॉक्सिन रिलीज होता है, वो डीप जाकर ब्लड सर्कुलेशन में आ जाता है. तब टॉक्सिक सिंड्रोम की स्थिति पैदा होती है. जिसे स्ट्रेप्टोकोकल टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम कहा जाता है. अच्छे से इलाज नहीं मिलने के कारण 48 घंटे में जान जा सकती है.
भारत में कितना खतरा?
जानकारी के मुताबिक भारत में अमूमन 5 से 15 साल तक के बच्चे ग्रुप-ए स्ट्रेप्टोकोकस की चपेट में आते हैं. हालांकि यहां पर ये इतना गंभीर नहीं होता कि स्ट्रेप्टोकोकल टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम का रूप ले पाएगा. भारत में अभी तक इस बैक्टीरिया का कोई केस रिपोर्ट नहीं हुआ है.
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