दुनिया का सबसे मजबूत जीव! खौलते हुए पानी और यहां तक कि अंतरिक्ष में भी रह सकता है जिंदा
Water Bear: इस जीव को चाहे आप खौलते पानी में डाल दीजिए, भारी वजन से कुचलिए या फिर अंतरिक्ष में फेंक दीजिए, तब भी ये जिंदा रह जाएंगे.
Strongest Creature: आमतौर पर गर्मियों में तापमान जब 42 से 45 डिग्री पहुंचता है तो हम गर्मी से परेशान हो उठते हैं. सोचिए अगर तापमान 100 डिग्री सेल्सियस हो जाए तो धरती पर रहने वाले जीवों क्या होगा! लेकिन आज हम आपको एक ऐसे जीव के बारे में बताएंगे जो 100 डिग्री सेल्सियस तापमान पर भी जीवित रह सकता है. जी हां, भले ही आपको सुनकर यकीन न हो लेकिन एक ऐसा जीव भी है जो खौलते हुए पानी में भी जीवित रहता है. इतना ही नहीं, यह जीव अंतरिक्ष में भी जिंदा रहता है. इसे धरती का सबसे कठोर जीव कहा जाता है. आइए जानते हैं इसके बारे में...
अंतरिक्ष में मादा ने दिए अंडे
टार्डिग्रेड्स को दुनिया का सबसे मजबूत जीव माना जाता है. वॉटर बीयर (Water Bear) यानी टार्डिग्रेड्स को चाहे आप खौलते पानी में डाल दीजिए, भारी वजन से कुचलिए या फिर अंतरिक्ष में फेंक दीजिए, तब भी ये जिंदा रह जाएंगे. साल 2007 में वैज्ञानिकों ने बहुत सारे टार्डिग्रेड्स को सैटेलाइट में डालकर स्पेस में भेज था. स्पेसक्राफ्ट के धरती पर लौटने पर देखा गया कि टार्डिग्रेड्स सिर्फ जीवित ही नहीं थे, बल्कि मादा टार्डिग्रेड ने अंडे भी दे रखे थे.
बिना पानी के भी रह सकता है जिंदा
यह अजीब जीव 300 डिग्री फारेनहाइट तक के तापमान को सहन कर सकता है. इतना ही नहीं, यह अंतरिक्ष की ठंड और मरियाना ट्रेच जैसे भारी दबाव वाले क्षेत्रों में भी जी जिंदा रह सकता है. ये आमतौर पर उन जगहों पर पाए जाते हैं, जो पानी की मौजूदगी के बाद सूख जाती हैं. सूखा होने पर टार्डिग्रेड के कुछ ऐसे जीन सक्रिय हो जाते हैं, जो उसकी कोशिकाओं में पानी की जगह ले लेते हैं. फिर वापस से मिलने पर ये कोशिकाओं को पानी से भर लेते हैं. समय के साथ इस जीव में शुष्क माहौल में भी जीवित रहने और कई सालों बाद दोबारा पानी पाकर जिंदा हो उठने की क्षमता विकसित हो चुकी है.
रेडिएशन भी सह सकता है
वैज्ञानिकों के अनुसार, टार्डिग्रेड्स के अंदर 'पैरामैक्रोबियोटस' नाम का एक जीन पाया जाता है. यह एक सुरक्षात्मक फ्लोरोसेंट ढाल की तरह अल्ट्रा वॉयलेट रेडिएशन (पराबैंगनी विकिरण) को अवशोषित कर उसे हानिरहित नीली रोशनी के रूप में वापस बाहर निकालता है. कोई भी जीव इन हानिकारक किरणों के बीच सिर्फ 15 मिनट तक ही जिंदा रह सकते हैं.
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