ये तो आप जानते हैं हर सरकार को शराब से काफी फायदा होता है और सरकार शराब बिक्री से काफी कमाई करती है. जब कोई 1000 रुपये की शराब की बोतल खरीदता है तो उसका एक काफी बड़ा हिस्सा सरकार की जेब में टैक्स, एक्साइज ड्यूटी के नाम पर चला जाता है. लेकिन, साउथ इंडिया के एक राज्य में कुछ अलग ही गणित सामने आई है. दरअसल, यहां के एक्साइड डिपार्टमेंट ने बिना एक भी शराब के बोतल बेचे 2600 करोड़ रुपये का कलेक्शन कर लिया है. आप भी सोच रहे होंगे कि आखिर एक्साइज डिपार्टमेंट को बिना शराब बिक्री के कैसे कमाई हो गई?
तो हम आप आपको बताते हैं कि एक्साइज डिपार्टमेंट को किस वजह से ये इनकम हुई है और किसी भी राज्य के एक्साइज डिपार्टमेंट के पास कलेक्शन के क्या-क्या तरीके होते हैं. तो जानते हैं कि एक्साइज डिपार्टमेंट के कलेक्शन से जुड़ी खास बात...
कहां का है ये मामला?
जिस कलेक्शन की ऊपर बात हो रही है, ये मामला तेलंगाना का है. दरअसल, तेलंगाना के एक्साइज डिपार्टमेंट ने एक भी बोतल बेचे बिना 2639 करोड़ रुपये का कलेक्शन किया है.
कैसे आया ये कलेक्शन?
अब बताते हैं कि आखिर बिना शराब बिक्री के ये कलेक्शन कैसे हुआ. दरअअसल, ये पैसे लिकर शॉप के आंवटन को लेकर हुए हैं. सरकार ने 2602 लिकर शॉप खोलने का प्रोसेस शुरू किया था और हर एप्लीकेशन पर सरकार ने 2 लाख रुपये का नॉन रिफंडेबल अमाउंट भी भरवाया था. यानी एप्लीकेशन जमा करने पर सरकार को ये पैसे देने थे और ये अमाउंट नॉन रिफंडेबेल था. ऐसे में सरकार को इन दुकानों के लिए 1.32 लाख एप्लीकेशन मिले और इसके लिए सरकार को 2639 करोड़ का कलेक्शन हो गया.
ऐसे में सरकार ने बिना शराब बिक्री के ये पैसे कमा लिए. सरकार ने दुकानें आवंटन के नाम पर ये कलेक्शन जुटाया था. खास बात ये है कि ये तो भी सिर्फ एप्लीकेशन में मिलने वाला अमाउंट है और अगर किसी को लाइसेंस मिल जाता है तो इसके बाद भी सरकार को पैसे देने होंगे. रिपोर्ट्स के अनुसार, जिन लोगों को लाइसेंस मिलता है, उन्हें 50 लाख से 1.1 करोड़ रुपये तक जमा करने होंगे, जिसके बाद एक्साइज डिपार्टमेंट को और भी ज्यादा रेवेन्यु होगा. इसके बाद जब शराब की बिक्री होगी, उसका अलग से रेवेन्यु सरकार को मिलेगा.
बता दें कि लाइसेंस मिलने पर 5000 तक की आबादी वाले क्षेत्र में रिटेल शॉप को 50 लाख रुपये का भुगतान करना होगा. इसके अलावा 20 लाख से अधिक आबादी वाले क्षेत्र में रिटेल शॉप का लाइसेंस रखने वाले व्यक्ति को हर साल 1.1 करोड़ रुपये का का भुगतान करना होगा. अगर दुकान मालिकों की बात करें तो उन्हें 27 फीसदी ऑर्डिनेरी ब्रांड पर और 20 फीसदी प्रीमियम ब्रांड पर कमाई होती है.
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