Mahabharata Warrior Barbarik: इस जगह पर है महाभारत के योद्धा बर्बरीक का मंदिर, भगवान कृष्ण से था अटूट प्रेम
महाभारत के योद्धा बर्बरीक के बारे में तो आप लोगों ने सुना ही होगा. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस योद्धा का भगवान कृष्ण से क्या संबंध था और भारत में इनका मंदिर किस जगह पर है?
क्या आप जानते हैं कि महाभारत के योद्धा बर्बरीक का मंदिर कहां पर है? बर्बरीक और भगवान कृष्ण का क्या रिश्ता था? आज हम आपको बताएंगे कि योद्धा बर्बरीक का मंदिर कहां पर है और उस जगह की क्या मान्यता है.
खादू श्याम मंदिर
बता दें कि खाटू श्याम मंदिर राजस्थान के सीकर शहर से 43 किमी दूर खाटू गांव में मौजूद हिंदू मंदिर है. ये मंदिर भगवान कृष्ण और उनके शिष्य बर्बरीक से जुड़ा तीर्थ स्थल है. लोगों का मानना है कि मंदिर में बर्बरीक का सिर है, जो महाभारत काल के महान योद्धा थे. उन्होंने महाभारत के युद्ध में कृष्ण के कहने पर अपना सिर काटकर दे दिया था. उन्होंने भगवान कृष्ण से वरदान हासिल किया था कि कलयुग में भक्त उन्हें उनके ही नाम श्याम से पूजेंगे. उनका मंदिर खाटू गांव में मौजूद है, इसलिए देश-दुनिया में उन्हें खाटू श्याम के नाम से जाना जाता है.
क्या थी कहानी ?
जानकारी के मुताबिक बर्बरीक की मां ने उनसे वचन लिया था कि हारते हुए पक्ष की ओर से ही लड़ना है. इसलिए उन्होंने कृष्ण के पूछे जाने पर बताया कि वह पांडवों और कौरवों में हारते हुए पक्ष की ओर से ही लड़ेंगे. यही कारण है कि उन्हें ‘हारे का सहारा’ कहा जाता है. बर्बरीक को कुछ ऐसी सिद्धियां प्राप्त थी कि वह पलक झपकते ही महाभारत का युद्ध लड़ रहे सभी योद्धाओं को एकबार में मार सकते थे.
महाभारत की कहानियों के मुताबिक इस ताकत को देखने के लिए श्रीकृष्ण ने उनकी परीक्षा लिया था. कृष्ण ने उनसे कहा कि एक तीर से पेड़ के सभी पत्ते भेदकर दिखाओ, तो बर्बरीक ने सभी पत्तों को छेद दिया था. इसके बाद उनका बाण श्रीकृष्ण के चारों ओर चक्कर लगाने लगा, क्योंकि उन्होंने एक पत्ता अपने पैर के नीचे दबा रखा था. श्री कृष्ण ने जब ब्राह्मण का रूप बनाकर बर्बरीक से शीश दान मांगा तो वचन से बंधे हुए बर्बरीक ने अपना सिर दान कर दिया था.
महाभारत के सबसे बड़े योद्धा?
खाटू श्याम के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने शीश दान करने से पहले श्रीकृष्ण का विराट रूप देखा था. उन्होंने महाभारत का पूरा युद्ध देखने की इच्छा जताई थी. इस पर श्रीकृष्ण ने उनका सिर रणभूमि के नजदीक एक पहाड़ी पर रख दिया. उन्होंने वहीं से पूरा युद्ध देखा था. महाभारत का युद्ध खत्म होने के बाद सबसे वीर योद्ध की तलाश शुरू हुई तो बर्बरीक से फैसला मांगा गया. उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण ही सबसे बड़े योद्धा हैं, क्योंकि हर तरफ उनका सुदर्शन चक्र ही घूमता हुआ नजर आ रहा था. जो लगातार शत्रुओं को मिटा रहा था. इस पर श्रीकृष्ण ने उन्हें कलयुग में उन्हीं के एक नाम श्याम से पूजे जाने का वरदान दिया था. यही कारण है कि मंदिर का नाम खाटू श्याम पड़ा है.
श्रीकृष्ण ने क्यों बर्बरीक का शीश मांगा?
पौराणिक कथाओं के मुताबिक जब श्रीकृष्ण ने बर्बरीक के पास सिर्फ तीन तीर देखे तो उपहास उड़ाते हुए कहा कि महाभारत का युद्ध तीन तीर से जीतोगे. इस पर उन्होंने बताया था कि उनका एक ही बाण महाभारत का युद्ध खत्म करने के लिए काफी है. उन्होंने कहा था कि अगर तीनों बाण चला दिए तो तीनों लोकों में हाहाकार मच जाएगा. उनके ऐसा बताने के बाद ही श्रीकृष्ण उनसे पीपल के पेड़ के सभी पत्ते छेदने को कहा था. परिणाम देखने पर श्रीकृष्ण को अहसास हो गया था कि पांडवों का जीतना नामुमकिन हो जाएगा. इसीलिए उन्होंने बर्बरीक से शीश दान मांगा था.
युद्ध में क्या हुआ?
महाभारत में खाटू श्याम यानी बर्बरीक के दो भाइयों का जिक्र मिलता है. अंजनपर्व और मेघवर्ण उनके भाई थे. दोनों ने महाभारत के युद्ध में भाग लिया था. युद्ध में दोनों भाइयों ने बड़ी वीरता का परिचय दिया था. युद्ध के 14वें दिन कर्ण के हाथों भीम के बेटे घटोत्कच, गुरु द्रोणाचार्य के बेटे अश्वत्थामा के हाथों अंजनपर्व और वनसेन के हाथों मेघवर्ण का वध हुआ था.
कैसे बना खाटू गांव में श्याम मंदिर?
बर्बरीक का शीश सीकर के खाटू गांव में मिला था. मान्यता है कि खाटू में जहां बर्बरीक का सिर दफन था, वहां रोज एक गाय आकर खुद ही दूध बहाती थी. इसके बाद खुदाई करने पर वहां शीश मिला. जानकारी के मुताबिक शुरुआत में एक ब्राह्मण ने उसकी पूजा की थी. इसके बाद फिर एक बार खाटू के राजा को सपने में उस जगह मंरि बनाने और बर्बरीक का शीश वहां स्थापित कर पूजा पाठ करने की बात कही गई थी. राजा ने उस जगह पर मंदिर बनवाया और कार्तिक महीने की एकादशी को मंदिर में शीश को सुशोभित किया गया था. आज भी इसी दिन बाबा श्याम का जन्मदिन पूरी धूमधाम से मनाया जाता है. जानकारी के मुताबिक मूल मंदिर 1027 में रूपसिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कंवर ने बनवाया था. मारवाड़ के शासक दीवान अभय सिंह ने 1720 में मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था.
खाटू श्याम की दादी और माता?
बता दें कि खाटू श्याम घटोत्कच और नागकन्या अहिलावती यानी मोरवी के सबसे बड़े बेटे थे. उनके दादा पांडवों में सबसे ताकतवर योद्धा भीम थे और उनकी दादी हिडिम्बा थीं. कुछ पौराणिक कथाओं के मुताबिक बर्बरीक सूर्यवर्चा नाम के यक्ष थे, जिनका पुनर्जन्म मानव के रूप में हुआ था. श्रीकृष्ण को खाटू श्याम का गुरु माना जाता है. वहीं बर्बरीक यानी खाटू श्याम भगवान शिव के परम भक्त थे. पहले उन्होंने आदिशक्ति की तपस्या कर असीमित शक्तियां हासिल की थी. इसके बाद उन्होंने गुरु श्रीकृष्ण की आज्ञा पर महादेव की घोर तपस्या कर तीन अभेद्य बाण हासिल किए थे. इसीलिए उन्हें ‘तीन बाण धारी’ भी कहा जाता है. उनको अग्निदेव ने अपना दिव्य धनुष वरदान में दिया था.