Termite and Global Warming: ग्लोबल वार्मिंग आज सबसे बड़ा संकट बनकर उभर रहा है. धरती का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है, वैज्ञानिक ग्लोबल वार्मिंग को लेकर लगातार चिंता जता रहे हैं. धरती पर अब तक 5 महाविनाश हो चुके हैं, लेकिन माना जा रहा है कि छठा महाविनाश ग्लोबल वार्मिंग की वजह से होगा. इसमें पानी उबलकर सूख जाएगा और पत्थर पिघल जाएंगे और ये इंसानों और बाकी जीवों के भी खात्मे का समय होगा. लगभग 65.5 मिलियन साल पहले हुआ 5वां महाविनाश जिसमें डायनासोर का खात्मा हुआ था, एक एस्टेरॉयड के धरती से टकराने पर हुआ था. ऐसा माना जा रहा है कि भविष्य में होने वाला विनाश कुदरती न होकर हमारी वजह से होगा. ग्लोबल वार्मिंग के लिए सिर्फ इंसान ही नहीं, बल्कि कुछ हद तक दीमक भी जिम्मेदार है. आइए जानते हैं ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ने में इसका क्या योगदान है.
दीमक भी हैं ग्लोबल वार्मिंग के जिम्मेदार
इंसानी गतिविधियों की वजह से धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा है. ऑक्सीजन का स्तर कम होता जा रहा है, जिसकी रफ्तार काफी ज्यादा है. एक बात जो बड़ी हैरानी वाली है वह यह है कि इसमें कुछ योगदान दीमकों का भी है. घरों में फर्नीचर और किताबों को बर्बाद करने वाले इस मामूली से जीव का कनेक्शन ग्लोबल वार्मिंग से भी है. हालिया स्टडीज बताती हैं कि गर्म मौसम में दीमक ज्यादा तेजी से लकड़ी खाने लगती हैं. तापमान में हर 10 डिग्री की बढ़त होने पर उनकी क्षमता में 7 गुना इजाफा होता है.
किस तरह दीमक गर्मी बढ़ा रही?
पेड़-पौधे ग्लोबल कार्बन चक्र में मुख्य भूमिका निभाते हैं. फोटोसिंथेसिस प्रक्रिया के दौरान पेड़-पौधे कार्बन डाइऑक्साइड सोखते हैं जिससे तापमान सामान्य रहे. पेड़ों की उम्र बढ़ने के साथ उनके कुछ हिस्से मरने लगते हैं. दीमक सबसे पहले इन्हीं को निशाना बनाते और खाने की प्रक्रिया में इन्हे डिकंपोज करने लगते हैं. इससे कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी ग्रीन हाउस गैसें निकलती हैं. जिनसे तापमान तेजी से बढ़ता है. इसलिए जैसे-जैसे तापमान बढ़ेगा, दीमकों की आबादी और उनके लकड़ी को चट करने की स्पीड भी बढ़ेगी. जिसका सीधा असर ग्लोबल वार्मिंग पर देखने को मिलेगा.
लकड़ी की डिकंपोजिंग से निकलती है कार्बन और मीथेन गैस
यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन से जुड़े वैज्ञानिकों ने दीमक पर अध्ययन किया जिसमें कई चीजें सामने आई, जैसे वैश्विक तापमान बढ़ने से दीमकों की आबादी बढ़ती जाएगी और वे दुनिया के हर कोने तक पहुंच जाएंगे. यह अध्ययन साइंस जर्नल में प्रकाशित हुआ और पहली बार दीमकों को लेकर चिंता जताई गई. इस दौरान सौ से अधिक वैज्ञानिकों ने दुनिया के 133 हिस्सों में लकड़ियों पर अध्ययन किया. हालांकि, अंटाकर्टिका को इस स्टडी में शामिल नहीं किया गया क्योंकि वहां के बैक्टीरिया, फंगस और दीमक खराब हो चुकी लकड़ियां ही खाते हैं.
ये रहा नतीजा
इन 133 साइट्स पर दीमकों के लकड़ी को नष्ट करने की रफ्तार देखी गई. जब इनका मिलान किया गया तो नतीजे चौंकाने वाले थे. दीमकों की लकड़ी को नष्ट करने की रफ्तार गर्म जगहों पर ठंडी जगहों से कहीं ज्यादा थी. इसमें यह भी पता चला कि गर्म जलवायु में दीमक ज्यादा आसानी से जिंदा रहती हैं. यह स्टडी इसी बात का इशारा करती है कि जैसे-जैसे गर्मी बढ़ेगी, वैसे-वैसे इनकी आबादी भी बढ़ेगी और इसके साथ ही स्वस्थ लकड़ियों का खत्म होना भी बढ़ता जाएगा.
साल 2017 में भी एक ऐसा ही अध्ययन सामने आया था, जिसने आगाह किया था कि दीमकों की सबसे तेजी से फैलने वाली 13 में से 12 प्रजातियां 2050 तक पूरी दुनिया में पहुंच चुकी होंगी, सिर्फ ठंडे इलाके ही बचेंगे, अगर तब तक वो ठंडे रह सके.
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