भारत में कई राजाओं नेे अपने राज्य की रक्षा के लिए बेहतरीन अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण करवाया था. साथ ही 1600 में पानीपत की लड़ाई के दौरान तोपों का इस्तेमाल भी शुरू हो गया था. इसी  लड़ाई में अहमद शाह अब्दाली ने 14 जनवरी 1761 को एक विशेष तोप का इस्तेमाल किया था. जिसे आग फैलाने वाली तोप केे रूप में भी जाना गया. इस तोप का नाम था 'जमजमा तोप'.


क्या है जमजमा तोप
युद्ध के लिए अहमद शाह अब्दाली नेे नई तोप बनाने का आदेश दिया. अब्दाली चाहते थेे कि ये तोप सबसे मजबूत और दूर तक मारक क्षमता वाली बने. इसलिए आदेश दिया गया कि इस तोप में मजबूत से मजबूत धातू का इस्तेमाल किया जाए. ऐसे में जब तोप बनाने का काम शुरू किया गया तो उसके लिए जरूरी धातुएं बीच में ही कम पड़ गईं.


जजिया से बनी तोप
जब ये खबर अब्दाली को मिली तो उन्होंने लाहौर के हिंदुओं से जजिया वसूलने का आदेश दे दिया. दरअसल उस समय कर लिया जाता था उसे जजिया कहा जाता था. कई लोग जब ये कर नहींं दे पाते थे तो उनके घर से बरतन से लेकर हर सामान ले लिया जाता था. हुआ भी कुछ ऐसा ही. इस आदेश के बाद ललाहौर के सुबेदार शाह वली खाान के सैनिकों ने हिंदू के घरों से तांबे और पीतल के बड़े-बड़े बर्तन इकट्ठे करना शुरू कर दिए. इसके बाद उन बर्तनों को पिघलाकर तोप बनाने का काम किया गया.


मराठा सेना से जीते युद्ध
इस तोप का इस्तेमाल मराठा के खिलाफ पानीपत के युद्ध में किया गया और इसी की बदौलत अहमद शाह अब्दाली पानीपत की तीसरी लड़ाई को जीतने में कामयाब रहे. फिलहाल पाकिस्तान के लाहौर में ये तोप रखी गई है. इस तोपरप को बने 265 साल का वक्त  बीत चुका है. ये तोप 14 फुट लंबी और 14 इंच चौड़े मुंह वाली है. इस आग उगलने वाली तोप को कई शासक अपने कब्जे में लेना चाहते थे. आखिरी बार दुर्रानी ने इस तोप को गवर्नर ख्वाजा के साथ लाहौर में छोड़ा था.            


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