तारीख 25 मार्च 1963...इसी दिन मेर आमेत इजरायल की ख़ुफ़िया एजेंसी मोसाद के चीफ बने. अपना पद संभालते ही उन्होंने अपने रक्षा अधिकारियों से पहला सवाल किया, इजरायल की सुरक्षा के लिए हम क्या कर सकते हैं? जवाब में सब ने एक सुर में कहा कि अगर हम किसी भी तरह से सोवियत विमान मिग-21 ला पाए तो ये देश के लिए बहुत बेहतर होगा. बस यहीं से शुरू हो गया मोसाद का सबसे बड़ा ऑपरेशन.
वायुसेना प्रमुख की जिद
बीबीसी पर छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, मेर आमेत एक दिन सुबह का नाश्ता कर रहे थे. तभी वहां इजरायली वायुसेना प्रमुख एज़ेर वाइजमन आ गए. नाश्ता करते हुए मेर ने पूछा कि वो उनके लिए क्या कर सकते हैं. इस पर बिना देर किए एजेर वाइजमन ने कहा मुझे मिग-21 चाहिए. ये सुनते ही मेर आमेत के माथे पर शिकन आ गई. उन्होंने वाइजमन से कहा, क्या आप पागल हो गए हैं. पूरे पश्चिम में एक भी मिग नहीं है. लेकिन वाइजमन पर उनकी बात का कोई असर नहीं हुआ. वो इस पर अड़े रहे कि उन्हें एक मिग 21 चाहिए ही.
ऑपरेशन डायमंड
वाइजमन से इस मुलाकात के बाद मेर आमेत मिग-21 को इजरायल लाने के मिशन पर लग गए. उन्होंने इसके लिए एक टीम बनाई. इस टीम ने इराक की वायुसेना में सेंध लगा कर उसके एक पायलट कैप्टेन मुनीर रेद्फ़ा को अपनी ओर कर लिया. इसके बाद मोसाद ने शुरू किया ऑपरेशन डायमंड. इस ऑपरेशन में मोसाद ने कैप्टेन मुनीर रेद्फ़ा का कोडनेम याहोलोम रखा था. इसका मतलब होता है हीरा.
एक गना और प्लेन इजरायल में
इस पूरे मिशन का दारोमदार कैप्टेन मुनीर रेद्फ़ा और मोसाद की स्पेशल टीम पर था. हालांकि, इस बीच सबसे बड़ी मुश्किल ये थी कि ऑपरेशन के दौरान इन दोनों के बीच संवाद कैसे स्थापित होगा. इसका तोड़ एक गाने से निकाला गया. दरअसल, मोसाद ने फैसला किया कि जिस दिन कैप्टेन मुनीर रेद्फ़ा को इराक से रूसी फाइटर जेट मिग-21 ले कर उड़ना होगा, उस दिन इजरायली रेडियो स्टेशन कोल पर अरबी गाना मरहबतें मरहबतें बजेगा.
ये गाना संकेत होगा कि कैप्टन मुनीर इराक से प्लेन लेकर उड़ जाएं. हुआ भी ऐसा. 14 अगस्त 1966 को मुनीर मिग-21 लेकर उड़ गए. हालांकि, आधे रास्ते में ही विमान में कुछ गड़बड़ी आ गई. इसके बाद उन्हें विमान को रशीद एयरबेस पर उतारना पड़ा. लेकिन इसके दो दिन बाद मुनीर फिर से मिग-21 लेकर उड़े और फिर इजरायल जा कर ही लैंड किया.
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