शहीद भगत सिंह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान योद्धा और राष्ट्रीय नायकों में से एक थे. भारत की आजादी के लिए उनके योगदान और बलिदान पर देश को गर्व है. आज यानी 28 सितंबर को लाहौर (अब पाकिस्तान) में हुआ था. उनकी जन्म तिथि पर पूरा देश भारत उन्हें गर्व और श्रद्धांजलि से याद करता है. लेकिन आज हम आपको शहीद भगत सिंह के जीवन के आखिर समय की वो घटना बताएंगे, जिस केस में अंग्रेजों ने उन्हें फांसी दी थी.
भगत सिंह
शहीद भगत सिंह भारत के महान वीरसपूतों में से एक थे. भारत अपने सभी वीरसपूतों की शहादत पर उन्हें श्रद्धांजलि देता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगत सिंह को फांसी क्यों दी गई थी. बता दें कि भगत सिंह ने देश को आजादी दिलाने के लिए अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. वहीं भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने 1928 में लाहौर में एक ब्रिटिश जूनियर पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की गोली मारकर हत्या कर दी थी. उसके बाद भारत के तत्कालीन वायसरॉय लॉर्ड इरविन ने इस मामले पर मुकदमे के लिए एक विशेष ट्राइब्यूनल का गठन किया था. जिसने बिना गवाहों के बयानों के सबूतों के अभाव में भी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु तीनों को फांसी की सजा सुनाई थी. इन तीनों वीर सपूतों को 23 मार्च 1931 को लाहौर सेंट्रल जेल के भीतर ही फांसी दी गई थी.
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जानें कहां दी गई थी भगत सिंह को फांसी
भारत में हर साल 23 मार्च को शहीद दिवस मनाया जाता है. भारत के इन तीन वीरों को 23 मार्च को पाकिस्तान स्थित लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दे दी गई थी. जानकारी के मुताबिक केंद्रीय असेंबली में बम फेंकने के जिस मामले में भगत सिंह को फांसी की सजा हुई थी, उसकी तारीख 24 मार्च तय की गई थी. लेकिन अंग्रेजों ने डर के तीनों वीरसपूतों को 11 घंटे पहले ही फांसी दे दी थी.
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केस की फाइल
जानकारी के मुताबिक अंग्रेजों के समय उर्दू में लिखी गई ये एफआईआर 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30. दो अज्ञात बंदूकधारियों के खिलाफ अनारकली थाने में दर्ज हुई थी. उस समय ये मामला आईपीसी की धारा 302, 120 और 109 के तहत दर्ज किया गया था. जानकारी के मुताबिक भगत सिंह के मामले की सुनवाई कर रहे जजों ने 450 गवाहों को सुने बिना फांसी की सजा सुनाई थी. इतना ही नहीं भगत सिंह के वकीलों को जिरह करने का मौका भी नहीं दिया गया था.
शहीद भगत सिंह की सजा माफ करने की मांग
बता दें कि पाकिस्तान के वकीलों के एक पैनल ने 2023 में भगत सिंह की सजा रद्द करने की मांग को लेकर लाहौर हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. याचिका में कहा गया है कि भगत सिंह ने आजादी के लिए जंग लड़ी थी. इतना ही नहीं भगत सिंह का सिर्फ सिख और हिंदू ही नहीं बल्कि मुसलमान भी सम्मान करते हैं.
याचिका में कहा गया था कि पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने दो बार सेंट्रल असेंबली में अपने भाषण के दौरान भगत सिंह को श्रद्धांजलि दी थी. कुरैशी ने ये भी दलील दी थी कि ये मामला राष्ट्रीय महत्व से जुड़ा है और इसे बड़ी बेंच के पास सुना जाना चाहिए. उन्होंने दावा किया कि ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सैंडर्स की हत्या की एफआईआर में भगत सिंह का नाम नहीं था, जिसके लिए उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई थी.
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