पानी रंगहीन होता है, लेकिन समुद्र को देखने पर यह हमें नीले और हरे रंग का दिखता है. हालांकि, पिछले कुछ वर्षों से महासागरों के पानी का रंग बदल रहा है. महासागरों की सतह हरी-भरी हो रही है. वैज्ञानिकों ने इसकी वजह ढूंढ़ने के लिए कई वर्षों से प्रयास किए थे और आखिरकार अब सच्चाई सामने आई है. वैज्ञानिक टीम का दावा है कि महासागरों के रंग में अप्रत्याशित परिवर्तन जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहा है. इससे जाहिर होता है कि हमारा पारिस्थितिकी तंत्र पहले जैसा नहीं रह रहा है. इसका मतलब क्या है और क्या पानी के रंग के परिवर्तन की चिंता की जानी चाहिए?


पारिस्थितिकी तंत्र को इस तरह से प्रभावित करता है ये


यह अध्ययन ब्रिटेन के साउथेम्प्टन में स्थित नेशनल ओशनोग्राफी सेंटर की ओर से महासागर और जलवायु विज्ञानी एवं शोधकर्ता बीबी कैल की अगुआई में किया गया है. पहली रिपोर्ट के अनुसार, कैल ने बताया कि उन्होंने दुनिया के आधे से अधिक महासागरों के पानी की जांच की और उनके रंगों में परिवर्तन की पहचान की. जिसके नतीजों ने उन्हें विचलित कर दिया. उन्होंने पाया कि हम पारिस्थितिकी तंत्र को इस तरह से प्रभावित कर रहे हैं जैसा पहले कभी नहीं देखा था. वैज्ञानिकों के अनुसार, यह परिवर्तन मुख्य रूप से छोटे प्लैंकटन के बीच हो रहे परिवर्तन के कारण हो सकता है. ये प्लैंकटन महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि वे समुद्री खाद्य श्रृंखला में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और वातावरण को स्थिर करने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं.


क्या हैं इसके मायने


आप सोच रहे होंगे कि समुद्र के पानी के रंग में परिवर्तन का इतना महत्व क्यों है. इसे बीबी कैल ने समझाया है. उन्होंने बताया कि हमें रंग परिवर्तन के बारे में चिंता करनी चाहिए क्योंकि रंग पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिति को दर्शाता है. यदि परिवर्तन हो रहा है, तो इसका मतलब है कि परिस्थितिकी तंत्र में बदलाव हो रहा है. उच्चतम परतों में समुद्र का रंग क्या हो रहा है, इसकी तस्वीर अंतरिक्ष से ली जा सकती है. गहरा नीला रंग दिखाएगा कि जीवन की संभावना वहां कम है. हालांकि, हरा पानी अधिक गतिशीलता की संभावना दर्शाएगा. विशेष रूप से प्रकाश की प्रतिसंश्लेषण करने वाले फाइटोप्लांकटन के कारण, जिसमें पौधों की तरह हरे हरे क्लोरोफिल होता है.


प्राणियों के जीवन पर ऐसे पड़ेगा असर


फाइटोप्लांकटन ऑक्सीजन उत्पन्न करते हैं, जिसे हम सांस लेने के लिए उपयोग करते हैं. यह वैश्विक कार्बन चक्र और समुद्री खाद्य श्रृंखला के लिए महत्वपूर्ण है. जहां फाइटोप्लांकटन की कमी होती है, वहां समुद्री पानी का रंग हरा नहीं होता है, जिससे उस स्थान पर जीवन की संभावना कम हो सकती है. इसलिए, यह परिवर्तन कितना खतरनाक है, इसे हम यहां समझ सकते हैं कि क्लोरोफिल की कमी दर्शाएगी कि ऑक्सीजन की कमी हो रही है. इससे प्राणियों के जीवन पर असर पड़ रहा है.


यह भी पढ़ें - मिल गए हिमयुग के हथियार, कुल्हाड़ियों की साइज बता रही है पूर्वजों का इतिहास