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इस मंदिर में 9 जहरीले पदार्थों से बनी है विराजमान मूर्ति, जानिए इसका इतिहास

एक ऐसा अनोखा मंदिर जहां पर 9 अलग-अलग जहरों से मिलाकर मूर्ति का निर्माण किया गया है. इस मंदिर का इतिहास बहुत रोचक है. आइए जानते हैं कि ये मंदिर कहां पर स्थित है.

 

मंदिरों में अलग-अलग धातुओं की मूर्ति होती है. लेकिन आज हम आपको एक ऐसे अनोखे मंदिर के बारे में बताएंगे जहां पर विराजमान मूर्ति 9 जहरीले पदार्थों से बनी है. आइए जानते है कि ये मंदिर किस राज्य में स्थित है और इसका क्या इतिहास है. तमिलनाडु के डिंडीगुल जिले के पलनि में स्थित अरुल्मिगु दंडायुधपाणी मंदिर है. अरुल्मिगु दंडायुधपाणी मंदिर भगवान शिव के पुत्र भगवान मुरुगन अथवा कार्तिकेय को समर्पित है. ये उनका सबसे प्रसिद्ध एवं सबसे विशाल मंदिर माना जाता है. बता दें कि डिंडीगुल के पलनि के शिवगिरि पर्वत स्थित मुरुगन स्वामी के इस मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है. लेकिन वर्तमान मंदिर का निर्माण चेर राजाओं द्वारा कराया गया था. इस मंदिर का वर्णन पुराण और तमिल साहित्य में मिलता है.

मंदिर का इतिहास 

जानकारी के मुताबिक जब महर्षि नारद ने भगवान शिव और माता पार्वती को ‘ज्ञानफलम’ अर्थात ज्ञान का फल उपहार स्वरूप दिया था. उस वक्त भगवान शिव ने उसे अपने दोनों पुत्रों भगवान गणेश और कार्तिकेय स्वामी में से किसी एक को देने का निर्णय लिया था. इसके लिए दोनों के सामने यह शर्त रखी गई थी कि जो भी सम्पूर्ण संसार की परिक्रमा शीघ्रता से कर लेगा, उसे यह फल प्राप्त होगा. इसके बाद कार्तिकेय स्वामी अपने वाहन मोर पर सवार होकर पूरे संसार की परिक्रमा करने निकल गए थे. लेकिन भगवान गणेश ने अपने माता-पिता की परिक्रमा करके कहा कि उनके लिए उनके माता-पिता ही संसार के समान हैं. भगवान शिव ने प्रसन्न होकर वह ज्ञानफल भगवान गणेश को दे दिया था. जब कार्तिकेय स्वामी परिक्रमा करके लौटे तो नाराज हो गए कि उनकी परिक्रमा व्यर्थ हो गई है. इसके बाद कार्तिकेय स्वामी ने कैलाश पर्वत छोड़ दिया था और पलनि के शिवगिरि पर्वत पर निवास करने लगे थे. बता दें कि यहाँ ब्रह्मचारी मुरुगन स्वामी बाल रूप में विराजमान हैं. 

 मंदिर का निर्माण

इस मंदिर का निर्माण 5वीं-6वीं शताब्दी के दौरान चेर वंश के शासक चेरामन पेरुमल ने कराया था. माना जाता है कि जब पेरुमल ने पलनि की यात्रा की थी, तो उनके सपनों में कार्तिकेय या मुरुगन स्वामी आए थे. उन्होंने पलनि के शिवगिरि पर्वत पर अपनी मूर्ति के स्थित होने की बात राजा को बताई थी. राजा पेरुमल को वाकई उस स्थान पर कार्तिकेय स्वामी की मूर्ति प्राप्त हुई, जिसके बाद पेरुमल ने उस स्थान पर मंदिर का निर्माण कराया था. इसके बाद चोल और पांड्य वंश के शासकों ने 8वीं से 13वीं शताब्दी के दौरान मंदिर के विशाल मंडप और गोपुरम बनवाए थे. 

मूर्ति निर्माण

माना जाता है कि मुरुगन स्वामी की मूर्ति 9 बेहद जहरीले पदार्थों को मिलाकर बनाई गई है. हालाँकि आयुर्वेद में इन जहरीले पदार्थों को एक निश्चित अनुपात में मिलाकर औषधि निर्माण की प्रक्रिया का भी वर्णन है. पलनि के अरुल्मिगु दंडायुधपाणी मंदिर के गोपुरम को सोने से मढ़ा गया है. हालाँकि मंदिर के गर्भगृह तक जाने की अनुमति किसी को भी नहीं है. वहीं मंदिर परिसर में ही भगवान शिव और माता पार्वती, भगवान गणेश की मूर्ति और ऋषि बोगार की समाधि है. ऋषि बोगार आयुर्वेद के विद्वान माने जाने जाते हैं और उन्होंने ही मुरुगन स्वामी की मूर्ति का निर्माण किया था. 

पंचतीर्थम प्रसादम

पलनि के इस मुरुगन स्वामी मंदिर की विशेषता यहाँ का प्रसाद भी है. जिसे ‘पंचतीर्थम प्रसादम’ कहा जाता है. पलनि के इस विशेष प्रसाद को GI टैग भी प्रदान किया गया है. पलनि के इस पंचतीर्थम का निर्माण केला, घी, इलायची, गुड़ और शहद से किया जाता है.

मंदिर कैसे पहुंचे

पलनि का सबसे नजदीकी हवाईअड्डा कोयंबटूर अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डा है, जो मंदिर से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इसके अलावा मदुरै का हवाईअड्डा भी पलनि से लगभग 125 किमी की दूरी पर स्थित है. वहीं पलनि एक रेलवे स्टेशन है, जो कोयंबटूर-रामेश्वरम रेललाइन पर स्थित है. इसके अलावा सड़क मार्ग से भी पलनि पहुँचना आसान है, क्योंकि तमिलनाडु राज्य परिवहन की बसें सीधे ही कई बड़े शहरों से पलनि के लिए चलाई गई हैं.

 

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