दुनियाभर में नदियों का जलस्तर लगातार गिर रहा है. यह एक ऐसा संकट है जिसने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है. संयुक्त राष्ट्र की एक ताज़ा रिपोर्ट ने इस गंभीर समस्या की ओर दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है. बताया जा रहा है कि रिकॉर्ड तोड़ गर्मी के बीच साल 2023 में दुनियाभर में नदियों का प्रवाह काफी निचले स्तर पर पहुंचा है. नदियां सिर्फ पानी का स्रोत ही नहीं हैं, बल्कि वे जैव विविधता, कृषि और अर्थव्यवस्था के लिए भी जीवनदायिनी हैं. इन नदियों का सूखना न केवल स्थानीय बल्कि वैश्विक स्तर पर भी गंभीर परिणाम उत्पन्न कर रहा है.
क्या है समस्या?
कई दशकों से जल संसाधनों का अत्यधिक दोहन, जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते तापमान और अनियंत्रित औद्योगीकरण ने नदियों के स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित किया है. नदियों का जलस्तर गिरने से न केवल मनुष्य बल्कि सभी जीव-जंतुओं के जीवन पर खतरा मंडरा रहा है. यह समस्या अब सिर्फ एक देश या क्षेत्र की समस्या नहीं रह गई है, बल्कि यह पूरी दुनिया के लिए एक गंभीर चुनौती बन चुकी है.
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भारत पर गहरा प्रभाव
भारत, जो कई पवित्र और ऐतिहासिक नदियों का घर है, इस वैश्विक संकट से अछूता नहीं रहा है. गंगा, यमुना, और कावेरी जैसी नदियां, जो देश की संस्कृति और अर्थव्यवस्था का एक अभिन्न अंग हैं, सूखे और प्रदूषण जैसी समस्याओं से जूझ रही हैं. इन नदियों का सूखना भारत के लिए एक गंभीर खतरा है क्योंकि यह देश की कृषि, उद्योग और घरेलू जरूरतों के लिए पानी का प्रमुख स्रोत है.
क्या है इस परेशानी के कारण?
बढ़ती गर्मी इस समस्या का खास कारण बताई जा रही है. वहीं बढ़ते तापमान के कारण हिमनद पिघल रहे हैं और वाष्पीकरण की दर बढ़ रही है, जिससे नदियों में पानी की कमी हो रही है. इसके अलावा कृषि, उद्योग और घरेलू उपयोग के लिए पानी का अत्यधिक दोहन भी एक प्रमुख कारण है. साथ ही औद्योगिक और घरेलू कचरे से नदियों का पानी प्रदूषित हो रहा है, जिससे पानी की गुणवत्ता बिगड़ रही है और वनों के विनाश से बारिश कम होती है और मिट्टी का कटाव बढ़ता है, जिससे नदियों में गाद जमा हो जाती है और उनकी जलधारण क्षमता कम हो जाती है.
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