क्या सच में कुछ सालों में आसमान दिखना बंद हो जायेगा? पढ़िए क्या कहती है नई स्टडी
वैज्ञानिकों के अनुसार, इसका कारण लाइट पॉल्यूशन यानी प्रकाश प्रदूषण है. पृथ्वी पर बढ़ते लाइट पॉल्यूशन की वजह से हमारी आंखों और वायुमंडल की रोशनी का बहुत ज्यादा परावर्तन हो रहा है.
Stars in the sky: रात का मौसम, हल्की हल्की हवा, खुला आसमान और आसमान में टिमटिम करते तारे... कैसा लगेगा अगर हम आपसे कहें की आने वाले कुछ सालों में आसमान में दिखाई देने वाले ये सितारे गायब हो जायेंगे. जी हां, वैज्ञानिकों की मानें, तो आने वाले कुछ सालों में हमें रात के वक्त आसमान दिखना बंद हो जाएगा. जर्मन रिसर्च सेंटर फॉर जियोसाइंसेस की ओर से एक रिसर्च स्टडी की गई जिसमें यह बताया गया कि पिछले एक दशक में आसमान की चमक में 10 फीसदी की कमी आई है. वैज्ञानिकों के अनुसार, धरती को रोशन करने वाली कृत्रिम रोशनी जैसे बल्ब, फ्लड लाइट्स आदि के चलते आसमान की चमक फीकी पड़ती जा रही है.
लाइट पॉल्यूशन है कारण
वैज्ञानिकों के अनुसार, इसका कारण लाइट पॉल्यूशन यानी प्रकाश प्रदूषण है. पृथ्वी पर बढ़ते लाइट पॉल्यूशन की वजह से हमारी आंखों और वायुमंडल की रोशनी का बहुत ज्यादा परावर्तन हो रहा है. इसलिए भी हमें आसमान धुंधला दिखता है. रात में तारे कम दिखने की भी यही वजह है. आज जब आसमान को देखते हैं तो ऐसा लगता है कि आसमान में तारों की संख्या ही कम होती जा रही है. हालांकि, कम लाइट और एयर पॉल्यूशन वाले क्षेत्रों में अभी भी आसमान साफ दिख रहा है.
फीकी पड़ रही आसमान की चमक
इस शोध में एशिया, यूरोप, उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका की 19 हजार जगहों के करीब 29 हजार लोगों से यह पूछा गया था कि क्या उन्हें अब रात में आसमान साफ दिखाई देता है और पिछले एक दशक से इसमें कितना फर्क नजर आया है. रिपोर्ट के मुताबिक, बीते एक दशक में आसमान की चमक 10 फीसदी तक फीकी पड़ी है. इंसानों की बनाई कृत्रिम रोशनी से प्राकृतिक रोशनी का क्षरण हो रहा है.
जीवन चक्र हो रहा प्रभावित
कीबा के मुताबिक, पिछले कुछ दशकों से आर्टिफिशियल लाइट के इस्तेमाल के चलते पर्यावरण पर असर पड़ रहा है. लाइट पॉल्यूशन इंसानों और जानवरों के जीवनचक्र पर भी असर डाल रहा है. जुगनुओं की प्रजाति धीरे-धीरे करके अब खत्म होती जा रही है. वहीं जानवरों के संचार के तरीके में भी अब बदलाव आ रहा है. वैज्ञानिकों का कहना है कि लाइट पॉल्यूशन को कम करने के लिए प्रकाश देने वाले यंत्रों की दिशा, मात्रा और प्रकार में सुधार करना आवश्यक है.
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