कंगना की 'इमरजेंसी' पर लटकी तलवार, जानें कौन लेता है फिल्म पर बैन लगाने का फैसला
एक्ट्रेस और सांसद कंगना रनौत की फिल्म इमरजेंसी इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुई है. क्या आप जानते हैं कि किसी भी फिल्म पर बैन लगाने का फैसला कौन लेता है. जानिए बैन लगाने का अधिकार किसके पास है.
बॉलीवुड इंडस्ट्री की एक्ट्रेस और सांसद कंगना रनौत इन दिनों अपनी फिल्म के लिए सुर्खियों में हैं. कंगना रनौत की फिल्म इमरजेंसी चर्चा का विषय बना हुआ है. दरअसल फिल्म को लेकर कंगना रनौत की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं और अभिनेत्री की इस फिल्म को एक और लीगल नोटिस मिला है. आज हम आपको बताएंगे कि आखिर किसी भी फिल्म पर बैन लगाने का फैसला कौन लेता है.
फिल्म इमरजेंसी
एक्ट्रेस और सांसद कंगना रनौत की फिल्म इमरजेंसी 6 सितंबर को रिलीज होने वाली थी. लेकिन सिख सुमदाय की आपत्ति के बाद फिल्म की रिलीज को टाला गया है और मामला कोर्ट में चला गया है. इसके बाद अब चंडीगढ़ डिस्ट्रिक कोर्ट के एक अधिवक्ता की तरफ से कंगना की इमरजेंसी को लेकर लीगल नोटिस जारी किया गया है.
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क्या है मामला
मीडिया रिपोर्ट के आधार पर चंडीगढ़ न्यायालय के पूर्व बार एसोसिएशन अध्यक्ष रहे रविंदर सिंह बस्सी ने इमरजेंसी को लेकर आपत्ति जताई है. उनके आरोप के मुताबिक कंगना रनौत की फिल्म में सिख समुदाय की छवि के साथ छेड़छाड़ की गई है और उसे खराब तरीके से पेश किया गया है. जानकारी के मुताबिक इस तरह से कंगना की फिल्म की मुसीबत और बढ़ गई हैं और इमजरेंसी की रिलीज को लेकर फिलहाल तलवार लटकी हुई है. गौरतलब है कि सेंसर बोर्ड की तरफ से रिलीज से 4 दिन पहले इमरजेंसी को पोस्टपॉन किया गया था.
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सेंसर बोर्ड
सबसे पहले जानते हैं कि आखिर सेंसर बोर्ड क्या होता है. सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (CBFC) एक वैधानिक संस्था है. सेंसर बोर्ड का हेडक्वार्टर मुंबई में है और इसके 9 क्षेत्रीय कार्यालय हैं, जो मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बैंगलूर, तिरुवनंतपुरम, हैदराबाद, नई दिल्ली, कटक और गुवहाटी में मौजूद है. यह सेंसर बोर्ड सिनेमैटोग्राफ एक्ट 1952 और सिनेमैटोग्राफ रूल 1983 के तहत काम करता है. जून 1983 तक इसे सेंट्रल फिल्म सेंसर बोर्ड के नाम से जाना जाता था.
यह सूचना और प्रसारण मंत्रालय के अधीन काम करता है. इसका काम किसी भी फिल्म को रिलीज के लिए उसके कंटेंट को इजाजत देना होता है. आम भाषा में कहा जाए तो तो कोई भी फिल्म रिलीज से पहले इस बोर्ड के पास जाती है. वह इसके कंटेंट को रिव्यू करते हैं. अगर उसमें कोई आपत्तिजनक चीज मिलती है, तो उसे हटाने या उसमें बदलाव के लिए मेकर्स को कहा जाता है. फिल्म के कंटेंट के हिसाब से ही उसे सर्टिफिकेट भी दिया जाता है. वहीं सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति केंद्र सरकार करती है.
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सेंसर बोर्ड कैटेगरी सर्टिफिकेट
बता दें कि सेंसर बोर्ड किसी भी फिल्म के कंटेंट के हिसाब से उसे सर्टिफिकेट देता है. कुछ फिल्में ऐसी होती हैं, जिन्हें आप परिवार के साथ देख सकते हैं. हालांकि कुछ फिल्मों में हिंसा और व्यस्क सीन होने के कारण उन्हें सिर्फ व्यस्कों के लिए ही रिलीज किया जाता है.
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सेंसर बोर्ड के चार कैटेगरी में सर्टिफिकेट
1 – (U) ये यूनिवर्सल कैटेगरी होती है. ऐसी फिल्में सभी वर्ग के दर्शकों देख सकते हैं.
2- (U/A) इसके तहत 12 साल से कम उम्र के बच्चे माता पिता या किसी बड़े की देख रेख में ही फिल्म देख सकते हैं.
3 - (A) ऐसी फिल्में सिर्फ व्यस्कों लोगों के लिए ही रिलीज की जाती हैं.
4 - (S) ये कैटगरी किसी खास वर्ग के लोगों के लिए होती है. खासतौर पर इन्हें डॉक्टर, इंजीनियर या किसान के लिए रिलीज किया जाता है.
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कौन लगा सकता है फिल्म पर बैन
अब सवाल है कि क्या सेंसर बोर्ड फिल्म पर बैन लगा सकती है. बता दें कि सेंसर बोर्ड का काम फिल्म को रिलीज के लिए सर्टिफिकेट जारी करने का होता है. उस पर रोक लगाने का काम सेंसर बोर्ड नहीं कर सकता है. हालांकि यह है कि कोई भी फिल्म सेंसर बोर्ड की अनुमति के बिना रिलीज नहीं हो सकती है. एक बार किसी फिल्म को सर्टिफिकेट मिलने के बाद केंद्र और राज्य सरकार अपने हिसाब से इस पर फैसला ले सकती हैं. कई बार सरकार कानून व्यवस्था का हवाला देकर कई फिल्मों पर रोक लगा चुकी हैं. सेंसर बोर्ड से सर्टिफिकेट मिलने के बाद भी केंद्र और राज्य सरकारों के पास किसी भी फिल्म को बैन करने का अधिकार होता है. हालांकि मामला कोर्ट में जाने के बाद अंतिम फैसला अदालत का माना जाता है. कोर्ट भी फिल्मों पर बैन लगाने के लिए स्वतंत्र है.
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