आइसक्रीमये नाम सुनकर ही बड़े हों या बच्चे, दोनों के दिलों में मिठास घुल जाती है. गर्मी के मौसम में ठंडक और ताज़गी का अहसास कराने वाली आइसक्रीम कभी सिर्फ बड़े लोगों के लिए हुआ करती थी. उस समय ये गरीब लोगों के लिए किसी सपने से कम नहीं थी. आज हम जानेंगे कि इसकी वजह क्या थी और कैसे समय के साथ आइसक्रीम ने आम लोगों तक अपनी पहुंच बनाई.


क्या है आइसक्रीम का इतिहास?


आइसक्रीम का इतिहास काफी पुराना है. ये मिठाई मुख्य तौर पर चीन में शुरू हुई थी, जहां दूध और चावल को बर्फ में मिलाकर एक तरह की ठंडी मिठाई बनाई जाती थी. धीरे-धीरे यह भारतीय उपमहाद्वीप और यूरोप में फैली, लेकिन इसकी पहुंच केवल समृद्ध वर्ग तक ही सीमित थी. गरीब लोगों के लिए इसे खरीदना संभव नहीं था.


आर्थिक असमानता


19वीं और 20वीं सदी में, जब आइसक्रीम का उत्पादन शुरू हुआ, तब समाज में आर्थिक असमानता चरम पर थी. अमीर लोग महंगी और टेस्टी आइसक्रीम का आनंद ले सकते थे, जबकि गरीबों के पास इस तरह की लक्ज़ीरी चीज़ों का खर्च उठाने की क्षमता नहीं थी. यह स्थिति केवल आइसक्रीम पर ही नहीं, बल्कि कई अन्य खाद्य वस्तुओं पर भी लागू होती थी.


बता दें उस समय आइसक्रीम बनाने के लिए विशेष उपकरणों और सामग्रियों की जरुरत होती है, जो पहले आम लोगों के लिए उपलब्ध नहीं थे. वहीं ठंडा रखने के लिए बर्फ और दूसरी चीजों का पाना भी कठिन था. ऐसे में इसे बड़े पैमाने पर उत्पादन करना और गरीबों को बेचना संभव नहीं था.


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कैसे हुई परिवर्तन की शुरुआत?


20वीं सदी के मध्य में, जब औद्योगिक क्रांति और तकनीकी विकास हुआ, तब आइसक्रीम के उत्पादन में भी क्रांति आई. नए मशीनों और तकनीकों के कारण, आइसक्रीम का उत्पादन सस्ता और सरल हो गया. इससे इसकी कीमतें भी कम हुईं और यह ज्यादा लोगों के लिए उपलब्ध हो गई.


ऐसे में जैसे-जैसे आइसक्रीम का उत्पादन बढ़ा, वैसे-वैसे इसे बेचने का तरीका भी बदलने लगा. आइसक्रीम को अलग-अलग फ्लेवर्स और पैकिंग में पेश किया गया, जिससे ये हर वर्ग के लोगों के लिए खास हो गई.


समाज में हुए बदलाव


आइसक्रीम की पहुंच बढ़ाने में समाज में आए बदलाव भी जरुरी थे. जैसे-जैसे समाज में जागरूकता बढ़ी, गरीबों के लिए खाद्य पदार्थों की उपलब्धता और उनकी गुणवत्ता को लेकर भी चिंताएं उठने लगीं. कई एनजीओ और सरकारी योजनाओं ने गरीबों के लिए सस्ती आइसक्रीम की पहुंच सुनिश्चित की.                                         


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